ग़ज़ल: हाँ सितम पर सितम आप ढाते रहे
ग़ज़ल
हाँ सितम पर सितम आप ढाते रहे
हम भी ज़ख्मों पे मरहम लगाते रहे
जले पाँव तपती हुयी रेत पर हम
अपने छालों को भरसक छिपाते रहे
ज़िंदगी मौत का खेल चलता रहा
हम भी गिन-गिन के साँसें बचाते रहे
जीत ली हमने बाज़ी मगर अश्के-ग़म
क्यों मेरी आँख में झिलमिलाते रहे
तुमको जाते हुये देख कर यूँ लगा
हम हथेली पे सरसों उगाते रहे
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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