Re: किस्सा तीन बहनों का
किस्सा तीन बहनों का
परीजाद बहमन की बातों को याद करके देर तक रोती रही। परवेज भी आँसू बहाता रहा। फिर उसने कहा, परीजाद, अब रोने-धोने से कुछ नहीं होगा। अब मैं जाता हूँ। मैं पता लगाऊँगा कि भैया किसी प्राकृतिक कारण से मरे हैं या किसी शत्रु ने उन्हें मारा है। किसी ने उन्हें मारा होगा तो मैं उसे जीता नहीं छोड़ूँगा, भैया की मौत का बदला जरूर लूँगा। परीजाद ने बहुत समझा कर उसे रोकना चाहा। वह बोली, मैंने एक भाई तो खोया ही है, दूसरे को मौत के मुँह में नहीं जाने दूँगी। बड़े भैया तुम से कुछ कम बहादुर नहीं थे। लेकिन परवेज ने उसकी एक भी बात न सुनी। उसने दूसरे दिन सुबह अपनी साहस यात्रा पर जाने की तैयारी शुरू कर दी।
दूसरे दिन उसके रवाना होने के समय परीजाद रो कर बोली, बड़े भैया ने तो अपनी कुशल जानने को एक राह भी बताई थी, तुम्हारा हाल मुझे कैसे मालूम होगा? परवेज ने उसे मोतियों की एक माला दी। उसने कहा, देखो, इसके सारे मोती अलग-अलग हैं। इसे उँगलियों पर चलाने से एक-एक मोती उँगलियों में आता है। जब तक यह मोती ऐसे ही रहें तो समझ लेना कि मैं ठीक-ठाक हूँ। जिस दिन यह एक-दूसरे से चिपक जाएँ और माला न फेरी जा सके तो समझ लेना कि मैं भी दुनिया में नहीं रहा। यह कह कर परवेज निकल पड़ा।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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