Re: शेरो-शायरी में मुहावरे
ओस पड़ जानी
यह मुहावरा दो अर्थों में प्रयुक्त होता है:
1. किसी कीमती वस्तु का मूल्य कम हो जाना
2. किसी वस्तु का आकर्षण एकाएक बढ़ जाना
उदाहरण (1):
बर्गे-गुल पर भी फिर इक ओस सी पड़ जावे है
देखे आलम जो वो तेरी अरक़ अफ़शानी का ...
(मिर्ज़ा जान “सदाखैर”)
उदाहरण (2):
जुज़ अश्के-बुलबुल अब नहीं गुल शाखसार पर
क्या ओस पड़ गयी है चमन में बहार पर ....
(मीर हसन)
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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