Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
गांव में जब भी इस पूजा की खबर लगती दोस्तों के साथ मैं भी चला आता। आज उसी मजार के पास से होकर गुजरते वक्त मन में उनके प्रति एक अजीब सी श्रद्धा जगी। वहां पूजा करते हुए झपसू मिंया को कई बार देखा भी था। ठेहूने के बल पर बैठकर हाथ पसार दिया। फिर सर झुका कर खड़ा हो गया। उसके बाद मन ही मन रीना को पाने की मन्नत मांग ली। जेब में रखी एक रूप्ये का सिक्का भी वहीं चढ़ा दिया और जाते जाते प्रणाम कर लिया। और फिर मजार को पक्का बनाने का बादा भी कर दिया।
सभा में पहूंचा। भाषण चल रही थी। किसी मस्जीद को मंदिर बताया जा रहा था और लोग जयकारा लगा रहे थे। जय श्रीराम। जय श्रीराम। किशोर मन था मेरा पर भाषण देने वाले की भाषा मुझे अच्छी नहीं लग रही थी, उसी तरह जैसे गांव का चुगुलबा मुझे अच्छा नहीं लगता है। चुगुलबा के बारे में प्रचलित है कि वह घर फोरबा है और चुगली कर कर के भाई भाई को लड़ा देता है इसलिए ही उसका नाम चुगुलबा पड़ गया है।
मैं सभा स्थल के पीछे चला गया। वहीं दो तीन लोगों की टोली में भाषण पर ही बहस हो रही थी तभी माउर गांव के एक व्यक्ति हमलोगों की टोली में शामिल हो गया और भाषणकर्ता बंधु को जोर जोर से गलियाने लगे। सभा स्थल के पीछे हमलोगो की सभा लग गई। बहस होने लगी और महोदयजी, जी हां, उनका नाम महोदय जी ही था, ने एक कथा हमलोगो को सुनाई जो मेरे जीवन पर गहरा असर छोड़ गया। उन्होंने कहा-
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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