Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
‘‘कुरौनी गेलहो हल बउआ, हमरा सब पता हो। रीना तोरा वहां से आइला के बाद से भुखल प्यास हखुन। जिद्द पकड़ले हखुन की घर जइबै। उनकर नानी भी उनकरा के घर भेजे के लिए कह रहो हखीन।’’
तसल्ली हुई। शायद रीना अब अपने गांव वापस आ जाए। मन के किसी कोने में यह आश्वासन मिलने लगा और मैं जानता था कि रीना मेरे लिए किसी हद तक जा सकती है.
प्रेम एक महायज्ञ है जिसमें समर्पण की आहुति होती है और अपना सबकुछ समर्पित कर प्रेमी आत्मिक ईश्वर का आह्वान करतें है और जिसका फलाफल कामनाहीन होता है। प्रेम समर्पण का एक अंतहीन सिलसिला है जो जात-परजात, धर्म-अधर्म, मान-सम्मान, कर्म-कुकर्म की परीधि से परे समर्पण के सिद्वांत पर पलता है और अपना सबकुछ समर्पिम कर प्रेमी को वह सुख मिलता है जिससे वह स्वर्ग पाने के प्रलोभन का भी तिरस्कार कर दे।
मन के अन्दर उमड़ते-घुमड़ते अर्न्तद्वंद का बादल अब समर्पण की मुसलाधार बारिस की तैयारी में था। रह रह कर एक टीस उठती और प्रेम में आहुति को कोई ललकारता। निसंदेह रीना का प्रेम समर्पण की सारी परीधियों के परे जा सकता था पर मैं दो राहे पर खड़ा था। दोराहा इस मायने में की, अपने घर की आर्थिक विपन्नता और उज्जवल भविष्य की कामना रह रह कर प्रेम डगर पर बढ़े पांव को अंदर की ओर खींच लेता। बाबूजी ने अपना जीवन शराब को समर्पित कर दिया है और घर में खाने का ठौर तक नहीं। छोटे चाचा की अभी एक साल पहले ही शादी हुई है, किसी तरह।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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