Re: अहिंसा का सिद्धान्त
सदाचार, आचरण की शुद्धता और विचारों की स्वच्छता तथा चारित्रिक आदर्श से मनोवृत्तियों का विकास इन सभी नैतिक सूत्रों की आधार भूमि है अहिंसा। यही धर्म का सच्चा स्वरूप भी है।
सर्वधर्म समभाव की आधारशिला है, समता, सामाजिक न्याय और मानव प्रेम की प्रेरक शक्ति भी है। सच्ची अहिंसा वह है जहाँ मानव व मानव के बीच भेदभाव न हो, हृदय और हृदय, शब्द और शब्द, भावना और भावना के बीच समन्वय हो। सारी वृत्तियाँ एक तान, एक लय होकर मानवीय संवेदनाओं के इर्द-गिर्द घूमें। सारे भेद मिटे, अंतर हट जाएँ और एक ऐसी मधुमती भूमिका का सृजन हो जहाँ हम सुख-दुःख बाँटे, आँसू और मुस्कान भी बाँटे।
महात्मा गांधी के मतानुसार- 'अहिंसा का, सत्य का मार्ग जितना सीधा है, उतना ही तंग भी, खांडे की धार पर चलने के समान है। नट जिस डोर पर सावधानी से नजर रखकर चल सकता है, सत्य और अहिंसा की डोर उससे भी पतली है। जरा चूके कि नीचे गिरे। पल-पल की साधना से ही उसके दर्शन होते हैं।'
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