Re: डार्क सेंट की पाठशाला
एक पद ने सिखाया दायित्व
एक भिक्षुक एक बार एक राजा के पास पहुंचा और कहा- राज्य के संचालन का उत्तरदायित्व ऐसे व्यक्ति पर हो जो भगवान बुद्ध के संदेशों को फैला कर उनके अनुसार राज्य व्यवस्था चला सके। इसके लिए हम दोनों में से कौन उपयुक्त है? राजा ने कहा-भंते! आप योग्य हैं। अच्छा हो कि इसका उत्तरदायित्व आप संभालें। आपने त्रिपिटकों का गहरा अनुशीलन किया है पर मेरा निवेदन है कि अगर आप एक बार त्रिपिटकों का अध्ययन और करें तो...। भिक्षुक बोला-इसमें क्या है! अभी मैं त्रिपिटकों का अध्ययन कर लौटता हूं। भिक्षुक कुछ महीने बाद राजसभा में लौटा। उसने स्पष्ट शब्दों में कहा- राजन! राजसत्ता अब मुझे सौप दें। राजा बोले- क्षमा करें एक बार आप फिर त्रिपिटकों का अनुशीलन करने का कष्ट करें। भिक्षुक की आंखों में क्रोध उतरा, परंतु उसने एकांत में समग्र त्रिपिटकों का शीघ्रता से अध्ययन किया, फिर राजसभा में लौटा सत्ता की बागडोर लेने। राजा शांत थे। भिक्षुक का सम्मान करते हुए एक बार फिर उससे त्रिपिटकों का अनुशीलन करने का आग्रह किया। भिक्षुक ने रोष भरे शब्दों में कहा- राजन, यदि तुम राज नहीं देना चाहते तो व्यर्थ मुझे इतना परेशान क्यों किया। राजा विनम्र बने रहे। बोल-भंते! मैं आप को दुखी नहीं करना चाहता। मेरा उद्देश्य तो केवल इतना ही है कि त्रिपिटकों का पारायण ढंग से हो, ताकि आप सभी कार्य सुगमतापूर्वक कर सके। भिक्षुक कुटिया में लौटा। गंभीरतापूर्वक अध्ययन करने लगे। सहसा एक पद आया-अप्प दीपोभव (अपने लिए दीपक बनो) इस बार भिक्षुक के सामने इसका अर्थ खुला। उसने सोचा, यदि उसने इस बात को ठीक से समझा होता, तो विरक्त भाव में रमण करने वाला फिर इस संसार में लौटने का प्रयत्न नहीं करता। वह फिर राजसभा में नहीं गया। राजा कुटिया में पहुंचे। प्रार्थना की- भंते पधारें, सत्ता संभालें। भिक्षु ने एक ही वाक्य कहा- राजन, मैंने अपनी सत्ता संभाल ली है। किसी अन्य सत्ता की अब मुझे कतई अपेक्षा नहीं है।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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