Re: अमर शहीद राम प्रसाद बिस्मिल / अशफाक़उल्ला ख
सरफरोशी की तमन्ना (बिस्मिल)
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है
खैंच कर लायी है सब को कत्ल होने की उम्मीद,
आशिकों का आज जमघट कूच-ए-कातिल में है
हम तो घर से निकले ही थे बांधकर सर पे कफ़न,
जान हथेली पर लिये लो बढ चले हैं ये कदम
जिन्दगी तो अपनी मेहमान मौत की महफ़िल में है,
अब न अगले वलवले हैं अब न अरमानों की भीड़
एक मिट जाने की हसरत अब दिले बिस्मिल में है
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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