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Originally Posted by munneraja
यदि इसी को आगे बढ़ाना है तो जल्दी से एक चुटीली कविता लिख मारो
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जो हुक्म दादा
ये लो झेलो :-
कौन कहता है,
एक
म्यान में -
दो तलवारें नहीं होती!
शादी के बाद
वह दोनों तलवारें
एक ही -
मकान में तो होती है.
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घर से निकले थे लौट कर आने को
मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए
बिगड़ैल
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