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Old 09-11-2010, 10:26 PM   #44
jai_bhardwaj
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तुम्हारे नयनों की जिह्वा
मुझे क्यों चाटती रहती ?
हृदय के बंधनों को वह
सहज ही काटती रहती /
भयंकर ज्वार लाती 'जय'
शिराओं में, लहू में भी,
प्रिये तुम दृष्टि तो फेरो
मुझे यह मारती रहती //
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
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