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:
छींटे और बौछार
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09-11-2010, 10:32 PM
#
46
jai_bhardwaj
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''आप'' मेरी दृष्टि में
आपका ललाट है या विन्ध्य का विशाल नग
आपके कपोल हैं या भानु शशि आकाश के /
आपके नयन हैं या मदिर झील हैं कोई
आपकी नासिका है या मनोरम रास्ते //
आपके अधर ज्यों सुधा कलश हों युगल
आपके दन्त ज्यों स्तम्भ हैं प्रकाश के /
आपकी ग्रीवा से झलकते हैं जल बिंदु
जैसे कि दिखते हैं पारदर्शी गिलास से //
कुच की कठोरता में कैसी स्निग्धता है
हीरे में जैसे कि दुग्ध का निवास है /
चपल शेरनी सा कमर का प्रकार 'जय'
आपका रूप है भरा वन-विलास से //
......................................
नग....... पर्वत
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।
कभी कभी -->
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Last edited by jai_bhardwaj; 09-11-2010 at
10:36 PM
. Reason: नग....... पर्वत
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