Re: छींटे और बौछार
सुलग रहे हैं बादल, झुलस रहा है सावन
काल की इस भट्ठी में जलता जीवन ईंधन
सेठ डकारें लेता है पर निर्धन के हैं अनशन
ताल की माटी माथे पर, है पैरों पर चन्दन
बहुत सहे हैं तेरे 'जय', अब ना सहेंगे ठनगन
मृत्यु खड़ी है आँगन में किन्तु हँस रहा जीवन
.............................
ठनगन ............ नखरे /
|