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Originally Posted by rajat vynar
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद, लावण्या जी. आपने चर्चा में भाग लिया और अपने संदेह को दर्ज कराया. तो हम यहाँ पर आपको यह बता दें कि अभी तक आपने हमारी ‘निःशुल्क सेवा’ पढ़ने का आनन्द लिया. अब आपको अपने विशेष प्रश्नों का उत्तर जानने के लिए हमारी ‘प्रीमियम सेवा’ लेनी होगी. मात्र 1000 पॉइंट के शुल्क पर आपकी शंका का समाधान कर दिया जायेगा. टिप्पणी- हमारे देश की ‘मोलभाव संस्कृति’ को बचाने के लिए यहाँ पर मोलभाव करने की पूरी छूट है. जितने पॉइंट पर सौदा तय हो जाये.
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रजत जी आपसे मेरा अनुरोध है, की आप इस विषय को दूसरी तरफ न ले जाएँ . मैंने इस लेख के आरंभ में ही पहली लाइन में लिखा है की प्रेम एक व्यापक शब्द है, किन्तु लोग आज इसका गलत अर्थ लेते हैं और अब ये भी कहूँगी की सिमित नही ये शब्द इतना , जितना साधारण जन समाज इसे लेता है क्यूंकि प्रेम के वश भगवन भी है, ये तो इतना व्यापक शब्द है और इतनी गहरी भावना है . आज सारे मानव समाज में सिर्फ प्रेम हो एक दूजे के लिए कोई कड़वाहट न हो दूजो की भलाई और दूजो के लिए त्याग की भावना यदिमानव मन में बस जय तो सोचिये आज ये दुनिया कितनी सुन्दर बन जाय. यदि प्रेम को सिर्फ एक परिवार या स्त्री पुरुष के संभंध तक सिमित कर दिया जय तो इसकी व्यापकता ही समाप्त हो जाएगी. फिल्मे देखकर या serials के प्रभाव में आकार हम इसको छोटा न बनाये और इसे बड़े पैमाने याने की विश्व व्यापी भावना बना दे ..तो सोचिये आज कही बम ब्लास्ट न होंगे, कोई युध्ध न होंगे सारी दुनिया सुख शांति से जीवन यापन करेगी . और मानव समाज का कितना विकास होगा सोचिये जरा आज जो धन युध्ध में लगाया जाता है , सुरक्षा के लिए लगाया जाता है, वो व्यर्थ खर्च न होते और वो ही धन सब देशों के विकास में लगता और हम मानव आज कहाँ से कहा पहुचे होते . ये व्यापकता है इस प्रेम की ,मेरा ये ही कहना है की ये बहना विश्व्यापी बने न की एक परिवार तक सिमित रहे ये .. जानती हूँ की आप कहेंगे अब की किसी भी चीज की शुरुवात परिवार सेही होती है पर हाँ शुरूवात परिवार से जरुर हो, किन्तु ये भावना सिरफ़ वही आकर न रुक जाय बल्कि आगे बढे प्रेम. और सबमें भाईचारे की भावना पनपे ये चाहूंगी और मेरे इस शीर्षक पर बहस करने का ये ही उद्देश्य था ..
धन्यवाद रजत जी पवित्रा जी और रजनीश जी इस विषय पर इतना प्रकाश डालने के लिए किन्तु मेरा आप लोगो से अब भी ये ही एक अनुरोध रहेगा की इस विषय की व्यापकता को समझकर छोटे या बड़े परदे की बातें न लायें न ही किसी ईयर बुक को ...