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Originally Posted by Rajat Vynar
यहाँ पर मौजूद सभी ‘बातों के बैज्ञानिकों’ को सादर नमस्कारके साथ सोनी पुष्पा जी मुझे आपसे यह कहना है कि यह सत्य है कि चर्चा यहाँ पर लम्बी हो गई है किन्तु जहाँ पर ‘बातों के वैज्ञानिक’ मौजूद होंगे वहाँ पर कई संदेह उठेंगे और चर्चा ज़रूर लम्बी ही खिंचेगी. मुझे आपसे यह बताते हुए बड़ी खुशी का अनुभव हो रहा है कि एक दर्जन साल जैसी भयानक अवधि तक अंग्रेजों की संगोष्ठियों में गपशप के वजनी अनुभव के साथ मैं यहाँ पर मौजूद हूँ. बहुधा मैंने यह पाया है कि लोग जब अपने सूत्र में एक समस्या लेकर आते हैं तो उसमें एक विचित्र सी अनोखी बात भी कहते हैं. लोग उस अनोखी बात को अनदेखा कर देते हैं और दूसरी बात पर चर्चा जारी रखते हैं और यह चर्चा निःसंदेह सूत्र-लेखक के लिए उपयोगी नहीं मानी जा सकती. इस सूत्र में ‘त्यागऔर प्रेम एक दूजे के पर्याय हैं या फिरएकदूजे से अलग रखना चहिये इसे’ कहा गया है. सभी जानते हैं कि ‘त्यागऔर प्रेम एक दूजे के पर्याय हैं’. अतः यहाँ पर ‘या फिरएकदूजे से अलग रखना चहिये इसे’ का अर्थ हुआ- ‘क्या त्याग के बिना प्रेम सम्भव है?’ अथवा ‘त्याग के बिना प्रेम कैसे करें?’. इस विषय पर किसी की नज़र नहीं जा रही है. ‘बातों का बैज्ञानिक’ होने के कारण मेरी दृष्टि गयी. मेरा उत्तर है- ‘हाँ, सम्भव है.’ लोग हैरत में आकर पूछेंगे- ‘कैसे?’ क्योंकि सभी जानते हैं कि त्याग के बिना प्रेम सम्भव नहीं. अतः सोनी पुष्पा जी, आपसे अनुरोध है कि पहले ‘त्याग के बिना प्रेम सम्भव नहीं है’पर चर्चा चलने की अनुमति प्रदान करें. बाद में मैं बताऊँगा कि ‘त्याग के बिना प्रेम कैसे करें?’ यहाँ पर मैं साफ़-साफ़ यह बता दूँ कि लेखन की हर पंक्ति ‘ईश्वरीय’ अथवा भगवान के लिए नहीं होती और जहाँ पर ऐसा भ्रम हो कि ईशनिंदा की गयी है उसे भ्रम ही माना जाए. आप अफ्रीका से हैं. आपको शायद पता नहीं कि हमारे देश में एक से एक बातों के बड़े-बड़े वैज्ञानिक मौजूद हैं. उनसे मिलने के लिए आपको काफी रैंड खर्चा करके यहाँ आना होगा. वैसे आपकी यात्रा विफल नहीं होगी. कोचीन हार्बर पर मेरे दो पानी के जहाज़ हमेशा खड़े रहते हैं. एक आपको दे दूँगा. खुद चलाकर ले जाइये. आप भी क्या याद कीजियेगा कि किसी धनवान से पाला पड़ा था. आपके पास पानी का जहाज़ चलाने का लाइसेन्स तो है न?
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Originally Posted by Rajat Vynar
यहाँ पर मौजूद सभी ‘बातों के बैज्ञानिकों’ को सादर नमस्कारके साथ सोनी पुष्पा जी मुझे आपसे यह कहना है कि यह सत्य है कि चर्चा यहाँ पर लम्बी हो गई है किन्तु जहाँ पर ‘बातों के वैज्ञानिक’ मौजूद होंगे वहाँ पर कई संदेह उठेंगे और चर्चा ज़रूर लम्बी ही खिंचेगी. मुझे आपसे यह बताते हुए बड़ी खुशी का अनुभव हो रहा है कि एक दर्जन साल जैसी भयानक अवधि तक अंग्रेजों की संगोष्ठियों में गपशप के वजनी अनुभव के साथ मैं यहाँ पर मौजूद हूँ. बहुधा मैंने यह पाया है कि लोग जब अपने सूत्र में एक समस्या लेकर आते हैं तो उसमें एक विचित्र सी अनोखी बात भी कहते हैं. लोग उस अनोखी बात को अनदेखा कर देते हैं और दूसरी बात पर चर्चा जारी रखते हैं और यह चर्चा निःसंदेह सूत्र-लेखक के लिए उपयोगी नहीं मानी जा सकती. इस सूत्र में ‘त्यागऔर प्रेम एक दूजे के पर्याय हैं या फिरएकदूजे से अलग रखना चहिये इसे’ कहा गया है. सभी जानते हैं कि ‘त्यागऔर प्रेम एक दूजे के पर्याय हैं’. अतः यहाँ पर ‘या फिरएकदूजे से अलग रखना चहिये इसे’ का अर्थ हुआ- ‘क्या त्याग के बिना प्रेम सम्भव है?’ अथवा ‘त्याग के बिना प्रेम कैसे करें?’. इस विषय पर किसी की नज़र नहीं जा रही है. ‘बातों का बैज्ञानिक’ होने के कारण मेरी दृष्टि गयी. मेरा उत्तर है- ‘हाँ, सम्भव है.’ लोग हैरत में आकर पूछेंगे- ‘कैसे?’ क्योंकि सभी जानते हैं कि त्याग के बिना प्रेम सम्भव नहीं. अतः सोनी पुष्पा जी, आपसे अनुरोध है कि पहले ‘त्याग के बिना प्रेम सम्भव नहीं है’पर चर्चा चलने की अनुमति प्रदान करें. बाद में मैं बताऊँगा कि ‘त्याग के बिना प्रेम कैसे करें?’ यहाँ पर मैं साफ़-साफ़ यह बता दूँ कि लेखन की हर पंक्ति ‘ईश्वरीय’ अथवा भगवान के लिए नहीं होती और जहाँ पर ऐसा भ्रम हो कि ईशनिंदा की गयी है उसे भ्रम ही माना जाए. आप अफ्रीका से हैं. आपको शायद पता नहीं कि हमारे देश में एक से एक बातों के बड़े-बड़े वैज्ञानिक मौजूद हैं. उनसे मिलने के लिए आपको काफी रैंड खर्चा करके यहाँ आना होगा. वैसे आपकी यात्रा विफल नहीं होगी. कोचीन हार्बर पर मेरे दो पानी के जहाज़ हमेशा खड़े रहते हैं. एक आपको दे दूँगा. खुद चलाकर ले जाइये. आप भी क्या याद कीजियेगा कि किसी धनवान से पाला पड़ा था. आपके पास पानी का जहाज़ चलाने का लाइसेन्स तो है न?
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आपके लेखन कला की पहचान आपके पहले सूत्र से हो चुकी है रजत जी . और आप बहुत बड़े आलोचक, समालोचक, और हास्य रचनाओ के रचयिता, व्याख्याता.. किसी भी विषय की बड़े रुचिपूर्ण ढंग से व्याख्या कर सकते हो ये सब हमे पता चल जाता है जब आप इतना कुछ लिखते हो .... पर सबसे पहले धन्यवाद देती हूँ की आप इतना इन्टरेस्ट ले रहे हो इस विषय में .और मेरी अनुमति न मांगिये, जरुर लिखिए बस इतना चाहूंगी कि,जो विषय है उससे न भटक जाएँ हम सब, क्यूंकि यदि हम दुसरी बातो पर ध्यान देने लगेंगे तो जो mein मुद्दा है वो एक तरफ रह जायेगा और हम फिल्मों,serialsकी और आगे निकल जायेंगे . और रही बात भगवान को इस लेख में लेने की, तो इस प्रेम शब्द की व्यापकता कितनी है वो बताने के लिए ये बात कहना यहाँ में बहुत जरुरी समझती हू क्यूंकि हम इंसान कभी भगवान से बढकर नही हैं.