Re: कथा संस्कृति
अरेखित त्रिकोण / उदय प्रकाश
-कुत्ते, कमीने… बाप से मुँह बड़ाता है! इसी दिन के लिए क्या तुझे पाल-पोस कर बड़ा किया था?
-चुप रह तू, बाप होने का हक जताता है, पर बाप की जिम्मेदारियाँ निभानी आती हैं तुझे? जितना तूने मुझ पर खर्च किया है, उससे दुगुना तुझे कमा-कमा कर खिला चुका हूँ मैं, समझा!
-क्यों बे बूढ़े, मौत आयी है क्या तेरी, जो अपने बेटे से जबान लड़ा रहा है।--–पुत्र का एक हितैषी बोला।
-स्साले, कमीने, हमको उपदेश देता है! हरामी की औलाद!!---कहते हुए अगले ही क्षण पिता-पुत्र दोनों उसकी छाती पर सवार थे।
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