Re: डार्क सेंट की पाठशाला
तर्क-वितर्क में न उलझें
परमात्मा शांत स्वरूप हैं तो फिर इंसान के जीवन में अशांति कहां से आई? यह तो उसने अपने आप पैदा की है। शांति पाने के लिए भटकने की आवश्यकता नहीं है। जीवन से उन दोषों को दूर करो जिसने तुम्हें अशांत कर रखा है। और उन्हें तुम अच्छी तरह से जानते और पहचानते हो? उसके दूर होने पर फिर जीवन में शांति ही शेष बचेगी। उसके लिए फिर कहीं भटकने की आवश्यकता नहीं है। अशांत तो इंसान को उसके दोषों ने कर रखा है। उस पर दोषों को दूर करने के बजाए खोज रहे हैं शांति को। दूसरी चीज परमात्मा ने हमें जो यह जीवन दिया है उसे बेकार की उधेड़बुन में, तर्क-वितर्क में व्यर्थ न करें। इससे कुछ हासिल नहीं होगा। अनमोल समय और शक्ति का सदुपयोग करने पर आपके जीवन में आनंद बढ़ जाएगा। फिर किसी भी कार्य को करने में कठिनाई का सामना नहीं करना पडेรพगा। कठिनाइयां आएंगी जरूर पर आपका विश्वास आपका रास्ता आसान कर देगा। लोभ इंसान को कहीं का नहीं छोड़ता। इसलिए इससे बचना चाहिए। इससे छुटकारा पाने का एक ही उपाय है कि अपने-पराए का भाव हृदय से निकाल कर जरूरतमंदों की सेवा करें। वैसे भी परमार्थ का भाव तो हम में कूट-कूट कर भरा है। अगर हम उसे भूल जाएंगे तो फिर यह सब कौन करेगा? हमारे महापुरुषों ने परमार्थ और इस देश के लिए अपना सब कुछ अर्पण कर दिया। खाओ पिओ और मौज करो यह हमारी संस्कृति ना तो पहले कभी थी और ना ही यह संस्कृति अभी है। बल, बुद्धि और विद्या आदि को दूसरे के हित में लगाना ही परमार्थ कहलाता है। इससे हमारी पहचान बनी है। यह शरीर भोग के लिए नहीं, दूसरों की सेवा के लिए है। मनुष्य को किसी से कुछ लेने की नहीं बल्कि देने की आदत डालनी चाहिए। लेना जड़ता है और देना चेतना है। सेवा करना मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है। विपत्तियों से घबराएं नहीं। इससे प्रसन्नता बनी रहेगी और वह प्रसन्नता समस्याओं के समाधान की राह दिखाएगी।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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