10-07-2014, 06:41 PM
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#16
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Re: भगतसिंह, राजगुरु व सुखदेव :.........
अंतिम भेंट.........
‘भगतसिंह, राजगुरु एवं सुखदेव इन महान क्रांतिकारियोंको फांसीका दंड सुनाया गया था । उस समय उनके साथ इस षड्यंत्रमें सहभागी शिवकर्मा, जयदेव कपूर एवं अन्य सहयोगियोंको आजन्म कारावासका दंड सुनाया गया था । जिन सहयोगियोंको आजन्म कारावास मिला था उन्हें अगले दिन बंदीगृह ले जानेवाले थे । तब बंदीगृहके वरिष्ठ अधिकारियोंने भगतसिंह, राजगुरु एवं सुखदेवसे अंतिम भेंट करनेकी उन्हें अनुमति दी ।
इस भेंटमें जयदेव कपूरने भगतसिंहसे पूछा, ‘आपको फांसी दी जा रही है । युवावस्थामें मृत्युका सामना करते हुए क्या आपको दु:ख नहीं हो रहा ? तब भगतसिंहने हंसकर कहा, ‘अरे ! मेरे प्राणोंके बदलेमें ‘इंकलाब जिंदाबाद’ की घोषणा हिंदुस्थानके गली-कूचोंमें पहुंचानेमें मैं सफल हुआ हूं और इसे ही मैं अपने प्राणोंका मूल्य समझता हूं । आज इस बंदीगृहके बाहर मेरे लाखों बंधुओंके मुखसे मैं यही घोषणा सुन रहा हूं । इतनी छोटी आयुमें इससे अधिक मूल्य कौन-सा हो सकता है ?’ उनकी तेजस्वी वाणीसे सभीकी आंखें भर आर्इं । सभीने बडी कठिनाईसे अपनी सिसकियां रोकीं । तब उनकी अवस्था देखकर भगतसिंह बोले, ‘मित्रों, यह समय भावनाओंमें बहनेका नहीं है । मेरी यात्रा तो समाप्त हो ही गई है; परंतु आपको तो अभी अत्यंत दूरके लक्ष्यतक जाना है । मुझे विश्वास है कि आप न हार मानेंगे और न ही थककर बैठ जाएंगे ।’
उन शब्दोंसे उनके सहयोगियोंमें अधिक जोश उत्पन्न हुआ । उन्होंने भगतसिंहको आश्वासन दिया कि ‘देशकी स्वतंत्रताके लिए हम अंतिम सांसतक लढेंगे’, और इस प्रकार यह भेंट पूर्ण हुई । इसके पश्चात् भगतसिंह, राजगुरु एवं सुखदेवके बलिदानसे हिंदुस्थानवासियोंके मनमें देशभक्तिकी ज्योत अधिक तीव्रतासे जलने लगी’ :.........
(‘साप्ताहिक जय हनुमान’, १३.२.२०१०)
Bal Sanskar के सौजन्य से :.........
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