Re: भगतसिंह, राजगुरु व सुखदेव :.........
प्रिय रफ़ीक जी, मैं अपनी ओर से सीधे सीधे कोई प्रतिक्रिया न दे कर निम्नलिखित दो प्रसंग उद्धृत करना चाहता हूँ:-
सन 1930 में भगत सिंह जेल में रहते हुये एक लेख लिखा था “मैं नास्तिक क्यों हूँ?”
1. भगत सिंह एक बहुत बड़े विचारक थे. 23 साल की छोटी सी उम्र में ही उसने ढेर सारी किताबें पढ़ डाली थी. भगत के सोचने का तरीका बेहद तार्किक व विवेकपूर्ण था. अपने विवेक और तर्क शक्ती के आधार पर 23 साल की छोटी सी उम्र में ही वह समझ गए थे कि समाज के असली दुश्मन ईश्वर व धर्म हैं. 23 वर्ष की आयु में ही भगत सिंह फाँसी पर झूल गये थे.
भगत सिंह का सपना भारत को अंग्रेज से आजाद कराना मात्र नहीं था. भगत का सपना इससे कहीं बड़ा था. उसका सपना था भारतीय समाज को ईश्वर व धर्म की गुलामी से मुक्ति दिलाना. भगतसिंह तर्क और विवेक को जीवन का आधार मानते थे. उनकी मान्यता थी कि धर्म और ईश्वर परआधारित जीवन पद्धति मनुष्य को कमजोर बनाती है. इसके विपरीत नास्तिकता मनुष्य को अपने भीतर शक्ति की प्रेरणा देता है.
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2. महात्मा गांधी ने भले बरसों बाद अपनी जीवनी में हसरत मोहानी को पूर्ण स्वराज्य की मांग करने वाला पहला शख्स बताकर अपना दिल हल्का करने की कोशिश की हो, लेकिन कांग्रेस के आभामंडल की रोशनी में लिखे गए ज्यादातर इतिहास में न सिर्फ पूर्ण स्वराज्य बल्कि स्वदेशी आंदोलन को भी महात्मा गांधी से ही जोड़कर देखा जाता रहा है। बाल गंगाधर तिलक को हसरत मोहानी अपना उस्ताद मानते थे और इंक़लाब ज़िंदाबाद नारे को भी हसरत मोहानी से ही जोड़कर देखा जाता है।
हमारे स्वतंत्रता संग्राम के अमर सेनानी और महान उर्दू शायर हसरत मोहानी ने बरसों पहले लिखा था –
हज़ार खौफ़ हों पर ज़ुबां हो दिल की रफ़ीक़
यही रहा है अजल से कलंदरों का तरीक़....
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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