30-03-2013, 10:55 PM
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#36
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Re: उमर खैय्याम की रुबाइयां
तेरी ख़ुशी क़ुबूल मुझे हिज्र का ख़याल.
ये ए’न सरफराज़ी जो दे शर्बते विसाल.
ये मैंने कब कहा था कि मेरी ख़ुशी ये है,
जो तालिबे रज़ा है हरिक हाल में निहाल.
धंधा दुनिया का अजब तौर से चलते देखा.
इसको हर मोड़ पे सौ रंग बदलते देखा.
जिस तरफ मेरी मुरादों ने उठाई है नज़र,
हाथ मायूसी से तकदीर को मलते देखा.
(प्रो. वाकिफ़)
Last edited by rajnish manga; 30-03-2013 at 10:59 PM.
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