Re: Kuchh mahtvapurn jankariyan kidney ke bare me
लीवर - किड़नी के साथ साथ लीवर भी नाजुक स्थिति में आ जाता है ऐसी स्थिति में दी जा रही दवाऐं नहीं पच पाती जिससे रोगी की स्थिति में कोई सुधार नहीं हो पाता तब किड़नी के साथ साथ लीवर का उपचार भी अनिवार्य हो जाता है
बगैर लिवर के उपचार लिये किड़नी का या अन्य किसी बीमारी का उपचार लेना गलत होता है क्योंकि किसी भी प्रकार की दवा या भोजन को पचाने के लिये लिवर का स्वस्थ्य होना बहुत ही जरुरी होता है।
तिल्ली - लम्बे समय से बुखार (हड्डी बुखार/बोन फीवर) के चलते या खून के ज्यादा टूटने के चलते तिल्ली भी बडी हुई होती है जो की समस्या को और बडा देती है क्योंकि इसके चलते क्रियटिनिन तेजी से बडता है
किड़नी उपचार के साथ इसका भी अनिवार्य हो जाता है।
प्रोस्टेट - पुरुषों में इंफेक्शन के चलते या अधिक उम्र के चलते प्रोस्टेट का साईज बड़ जाता है जिसके चलते पेशाब सही से नही हो पाती है या ज्यादा दबाब बनाने पर आती है
सामान्य व्यक्ति या किड़नी रोगी को इसका उपचार समय पर ले लेना चाहिये नहीं तो पेशाब के बैक फ्लो के चलते किड़नी परेशानी (किड़नी का साइज का बडा होना या कम काम करना) में आ सकती है
किड़नी रोगी के लिये प्रोस्टेट का उपचार भी लेना अनिवार्य हो जाता है
👉 किड़नी स्टोन (पथरी) - यह किसी को कभी भी हो सकती है पेट दर्द होने पर Whole Abdomen U.S.G. जरुर करवाये
किड़नी स्टोन को जितनी जल्दी हो सके आयुर्वेदिक या होम्योपैथिक दवाओं से गलाकर निकाल देना चहिये
क्योंकि दवाओं से गलाकर निकालने से पथरी 99% दोबारा नहीं होती है साथ ही यह सुरक्षित तरीका भी है
पथरी से किड़नी में घाव या पेशाब रुकावट के चलते किड़नी के खराब होने चांस बड़ जाते है
लम्बे समय तक स्टोन के चलते किड़नी की कार्य क्षमता बिगड़ जाती है जिसके चलते किड़नी फेल्युअर में जाने लगती है।
नोट - जिन रोगियों को बी.पी. या शुगर या थायरॉइड की समस्या है उनको समय समय पर ये 5 टेस्ट कराते रहना चाहिये
जब भी पेशाब में प्रोट्रीन की मात्रा बढ़ती दिखे या किड़नी में स्टोन दिखे तो तुरंत उपचार लेना प्रांरभ कर दे क्योंकि शुरुआती समय में उपचार होने पर बीमारी जटिल नहीं हो पाती और हम कम समय में ठीक भी हो जाते है अन्यथा गंभीर स्थिती में (क्रियटिनिन 10 से ऊपर होने पर) डायलिसिस या G.F.R. 5 से कम होने पर किड़नी ट्रांसप्लांट ही विकल्प बचते है।
सही समय पर जानकारी और बचाव से हम शरीरिक व आर्थिक क्षति से बच सकते है
अगर किड़नी रोगी शुरुआती समय में यानि क्रियटिनिन 1.8-6 में उपचार शुरु कर देता है तो वह जल्दी ठीक भी होते है और डायलिसिस की जरुरत भी नहीं पड़ती है।
कृपया इस जानकारी को अपने सभी ग्रुप में शेयर करें जिससे हम किड़नी फेल्युअर जैसी स्थिति में जाने से लोगों को बचा सके इस पोस्ट को शेयर कर आप भी किड़नी रोग मुक्त भारत अभियान का हिस्सा बने।
Internet ke madhyam se ..
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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