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Old 25-03-2016, 02:33 PM   #185
rajnish manga
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Default Re: मुहावरों की कहानी

कौन छोटा कौन बड़ा


शंकर के जीवन में उल्लेख है कि शंकर सुबह-सुबह नहाकर ब्रह्ममुहूर्त में काशी के गंगा-घाट पर सीढ़ियां चढ़ रहे हैं, कि एक शूद्र ने उन्हें छू लिया। क्रुद्ध हो गए, कहा कि देखकर नहीं चलते हो? मुझ ब्राह्मण को छू लिया! अब मुझे फिर स्नान करने जाना पड़ेगा।

शूद्र ने जो कहा, लगता है जैसे स्वयं परमात्मा शूद्र के रूप में आकर शंकर को जगाया होगा।

शूद्र ने कहा: एक बात पूछूँ ? तुम तो अद्वैत की बात करते हो -- एक ही परमात्मा है, दूसरा है ही नहीं। तो तुम अलग, मैं अलग ? शंकर ठिठके होंगे।

आकर हारना पड़ेगा इस शूद्र से, यह कभी सोचा भी न होगा। मगर बात तो चोट की थी।

सुबह के उस सन्नाटे में, एकांत घाट पर, शंकर को कांटे की तरह चुभ गई। बात तो सच थी -- अगर एक ही परमात्मा है, तो कौन शूद्र, कौन ब्राह्मण!

फिर उस शूद्र ने कहा: मेरे शरीर ने तुम्हें छुआ है, तो मेरे शरीर में और तुम्हारे शरीर में कुछ भेद है?

खून वही, मांस वही, हड्डी वही। तुम भी मिट्टी से बने, मैं भी मिट्टी से बना। मिट्टी मिट्टी को छुए, इसमें क्या अपवित्रता है ?

और अगर तुम सोचते कि मेरी आत्मा ने तुम्हारी आत्मा को छू लिया, तो क्या आत्मा भी पवित्र और अपवित्र होती है ?

कहानी कहती है, शंकर उसके चरणों पर झुक गए। इसके पहले कि उठें, शूद्र तिरोहित हो गया था। बहुत खोजा घाट पर, बहुत दौड़े, कुछ पता न चल सका।
जैसे परमात्मा ने ही शंकर को बोध दिया हो कि बहुत हो चुकी बकवास माया और ब्रह्म की, जागोगे कब ? शंकर की सब दिग्विजय व्यर्थ हो गई। और यह जो हार हुई शूद्र से, यही जीत बनी। इसी घटना ने उनके जीवन को रूपांतरित किया।

अब वे केवल दार्शनिक नहीं थे, अब केवल बात की ही बात न थी, अब जीवन में उनके एक नया अनुभव आया -- नहीं कोई भिन्न है, न ही कोई भिन्न हो सकता है।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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