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Old 26-01-2014, 09:47 PM   #12
rajnish manga
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Default Re: लोककथा संसार

पापबुद्धि ने कहा, "सारा धन अगर गांव में ले गये तो इसे भाई बटवा लेंगे और अगर कोई पुलिस को खबर कर देगा तो जीना मुश्किल हो जायगा। इसलिए इस धन में से आवश्यकता के अनुसार थोड़ा-थोड़ा लेकर बाकी को किसी जंगल में गाड़ दें। जब जरुरत पड़ेगी तो आकर ले जायेंगे।"

यह सुनकर धर्मबुद्धि बहुत खुश हुआ। दोनों ने वैसा ही किया और घर लौट गए।

कुछ दिनों बाद पापबुद्धि उसी जंगल में गया और सारा धन निकालकर उसके स्थान पर मिटटी के ढेले भर आया। उसने वह धन अपने घर में छिपा लिया। तीन-चार दिन बाद वह धर्मबुद्धि के पास जाकर बोला, "मित्र, जो धन हम लाये थे वह सब खत्म हो चुका है। इसलिए चलो, जंगल में जाकर कुछ धन और लें आयें।"

धर्मबुद्धि उसकी बात मान गया और अगले दिन दोनों जंगल में पहुंचे। उन्होंने गुप्त धन वाली जगह गहरी खोद डाली, मगर धन का कहीं भी पता न था। इस पर पापबुद्वि ने बड़े क्रोध के साथ कहा, " धर्मबुद्धि, यह धन तूने ले लिया है।"

धर्मबुद्धि को बड़ा गुस्सा आया। उसने कहा, "मैंने यह धन नहीं लिया। मैंने अपनी जिंदगी में आज तक ऐसा नीच काम कभी नहीं किया ।यह धन तूने ही चुराया है।"

पापबुद्वि ने कहा, "मैंने नहीं चुराया, तूने ही चुराया है। सच-सच बता दे और आधा धन मुझे दे दे, नहीं तो मैं न्यायधीश से तेरी शिकायत करूंगा।"

धर्मबुद्धि ने यह बात स्वीकार कर ली। दोनों न्यायालय में पहुंचे। न्ययाधीश को सारी घटना सुनाई गई। उसने धर्मबुद्वि की बात मान ली और पापबुद्धि को सौ कोड़े का दण्ड दिया। इस पर पापबुद्धि कांपने लगा और बोला, "महाराज, वह पेड़ पक्षी है। हम उससे पूछ लें तो वह हमें बता देगा कि उसके नीचे से धन किसने निकाला है।"

यह सुनकर न्यायधीश ने उन दोनों को साथ लेकर वहां जाने का निश्यच किया। पापबुद्धि ने कुछ समय के लिए अवकाश मांगा और वह अपने पिता के पास जाकर बोला, "पिताजी, अगर आपको यह धन और मेरे प्राण बचाने हों तो आप उस पेड़ की खोखर में बैठ जायं और न्यायधीश के पूछने पर चोरी के लिए धर्मबुद्धि का नाम ले दें।"


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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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