Re: डार्क सेंट की पाठशाला
बांटने से बढ़ता है प्रेम
आचार्य रामानुज के पास एक युवक आया और उन्हें प्रणाम करने के बाद उनके पास बैठा गया। उसने उनसे सवाल किया, महाराज मैं परमात्मा को पाना चाहता हूं मेरा मार्गदर्शन करें। इस पर आचार्य ने कहा,बेटा इससे पहले कि मैं तुम्हारा मार्गदर्शन करूं यह जानना चाहता हूं कि तुमने कभी किसी से प्रेम किया है? तपाक से युवक ने कहा, महाराज आप कैसी बातें करते हैं। मैंने आज तक किसी की तरफ आंख उठाकर देखा तक नहीं। बड़ा सीधा-सादा युवक हूं, मेरे संस्कार बचपन से धार्मिक हैं। आचार्य रामानुज ने फिर पूछा। सोच कर बताओ क्या कभी किसी से प्रेम किया है? युवक ने कहा नहीं महाराज। मैं तो परमात्मा को पाना चाहता हूं। मैं आजकल के युवकों के जैसा नहीं हूं। मेरे परिवार का वातावरण धार्मिक है। मैं उसी में बड़ा हुआ हूं। आचार्य ने तीसरी बार पूछा। फिर से देख लो बीते दिनों को और ठीक से सोचकर बताओ क्या तुमने कभी किसी से प्रेम किया है? युवक ने कुछ क्षण सोचा और कहा नहीं महाराज मैं दावे के साथ कहता हूं मैंने कभी किसी से प्रेम नहीं किया। आचार्य रामानुज निराश होकर बोले, तब मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता। जिसने कभी संसार में किसी से प्रेम नहीं किया वह परमात्मा से क्या खाक प्रेम करेगा? तुम्हारे भीतर यदि प्रेम की चिंगारी कहीं मौजूद होती तो मैं उसे आग में बदल सकता था। तीन बार तुमने एक ही जवाब दिया है, लेकिन अब भी मुझे तुम्हारे जवाब में शंका है कि वह सही है भी या नहीं। यदि जीवन में तुमने किसी से प्रेम न किया होता तो आज जी न रहे होते। अभी तक तुम्हारा जो जीवन चल रहा है वह इस बात का प्रमाण है कि कभी न कभी तुमने प्रेम अवश्य किया होगा। यह जीवन प्रेम के बल पर ही चलता है। यह प्रेम ऐसी चीज है कि बांटने से बढ़ती और देने से मिलती है। मांगो मत पाओ और पाने के लिए लुटाना होगा। कहा जा सकता है कि अगर आप देने की काबिलियत रखते हैं, तभी आपको कुछ मिल सकता है। बिना दिए कुछ नहीं मिल सकता।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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