Re: डार्क सेंट की पाठशाला
संत को मिल गई सीख
संत जुनैद का एक विचित्र शौक था। वह जिंदगी के अलग-अलग अनुभव हासिल करने के लिए भेष बदल कर घूमा करते थे। लोग समझ ही नहीं पाते थे कि संत जुनैद को यह शौक क्यों है और वे इसके जरिए आखिर लोगों को संदेश क्या देना चाहते हैं लेकिन संत जुनैद अपने इस शौक के सहारे ही लोगों की अच्छी बुरी आदतों से परिचित होते थे और उसी अनुसार लोगों का मूल्यांकन भी किया करते थे। एक बार वह भिखारी बनकर एक नाई की दुकान पर पहुंच गए। कुछ देर तो संत जुनैद दुकान के बाहर ही खड़े हो सोचते रहे कि अंदर जाऊं या नहीं क्योंकि ऐसा ना हो कि वह मुझे लताड़ कर निकाल दे। वह नाई उस समय एक रईस ग्राहक की दाढ़ी बना रहा था। उसने जब एक भिखारी को दुकान पर आते देखा तो रईस की दाढ़ी बनाना छोड़ जुनैद की दाढ़ी बनाने लगा। उसने जुनैद से पैसे नहीं लिए बल्कि उन्हें अपनी क्षमता मुताबिक भिक्षा भी दी। जुनैद नाई के व्यवहार से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने निश्चय किया कि वे उस दिन जो कुछ भी भीख के रूप में हासिल करेंगे उसे उस नाई को दे देंगे। यह एक संयोग ही था कि उस दिन एक अमीर तीर्थ यात्री ने जुनैद को सोने के सिक्कों से भरी एक थैली दी। जुनैद खुशी-खुशी थैली लेकर नाई की दुकान पर पहुंचे और उसे वह देने लगे। एक भिखारी के हाथ में सोने से भरी थैली देखकर नाई को आश्चर्य हुआ। वह यह भी नहीं समझ पा रहा था कि एक भिखारी उसे यह क्यों देना चाहता है। जब उसे पता चला कि जुनैद उसे वह थैली क्यों दे रहे हैं तो वह नाराज होकर बोला, आखिर तुम किस तरह के फकीर हो? सारा कुछ तुम्हारा फकीरों जैसा है, पर मन से तुम व्यापारी हो। तुम मुझे मेरे प्रेम के बदले में यह पुरस्कार दे रहे हो। प्रेम के बदले तो प्रेम दिया जाता है, कोई वस्तु नहीं। ऐसी वस्तु उपहार नहीं रिश्वत है। जुनैद भौंचक रह गए। उस नाई ने उन्हें एक बड़ी नसीहत दी थी।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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