Re: Jabalpur, Indore & Mandu (M.P.)
जहाज़ महल का पूरा परिसर बहुत विशाल है। इसमें पानीकी व्यवस्था उजली बावड़ी और अंधेरी बावड़ी के माध्यम से की गई है। नहाने के लिएआधुनिक जकूज़ी जैसी व्यवस्था, लंबी (अब बंद) सुरंगे जहाज़ महल के महत्त्व का बखानकरती हैं। जहाज़ महल के ऊपर पहुँचकर हम चारों ओर पानी से घिरे जहाज़ महल का पूरानज़ारा लेते हैं और मुक्त हवाओं में सांस लेते हुए आगे बढ़ते हैं। एक ओर बना हुआ हैहिंडोला महल। झूले की आकृति के कारण ही इसे हिंडोला महल की संज्ञा दी गई लगती है।यह गयासुद्दीन ख़िलजी के शासन का एक सभा भवन है। अपनी ढलानदार दीवारों के कारण यहझूलता हुआ दिखता है और शायद हिड़ोला प्रतीक है इस बात का भी कि शासन कोई भी हो औरचाहे किसी का भी हो, वह हिंडोले की तरह से ही इधर से उधर और उधर से इधर झूलता हीरहता है। हिंडोला महल के पश्चिम की ओर अनेक ऐसी इमारतें हैं जो अपने पुरातन वैभव, भव्यता और ऐश्वर्य का बयान दर्ज कर रही हैं। इन्हीं इमारतों के बीचों-बीच हैखूबसूरत चंपा बावड़ी जहाँ कुछ पर्यटक परिंदे अपने पंख फटकारते नज़र आते हैं।
हाथी पोल यानी जहाँ हाथियों को बाँधा जाता था औरतवेली महल यानी अस्तबल या तबेला देखने के बाद हम पारंपरिक रूप से दसवीं शताब्दी मेंबनवाई हुई एक नाट्यशाला में प्रवेश करते हैं। इस नाट्यशाला की कल्पना अवश्य हीनाट्यशास्त्र के अनुसार की गई लगती है। इसमें आधुनिक तरीके का रंगमंच न होकररंगभूमि की तर्ज़ पर बना हुआ मंच है। हालाँकि दर्शकों के बैठने की व्यवस्था मंच केइर्द-गिर्द न हो कर मंच के सामने है लेकिन मंच और दर्शकों के बैठने के स्थान कीऊँचाई लगभग एक समान है। मंच को दो प्रस्तर शिलाओं को खड़ा करके इस तरह से बाँटा गयाहै कि वहाँ संगीत सभाएँ और शायरी-कविता के दौर भी एक साथ चलते होंगे और शायद नाटकके दृश्यों का संयोजन अलग-अलग हिस्सों में किया जाता होगा। जहाज़ महल की भव्यता कावर्णन जहाँगीर ने अपने संस्मरणों में भी किया है। इससे यह प्रमाणित होता है किजहाँगीर ने भी अपने प्रेयसी पत्नि नूरजहाँ के साथ कुछ समय यहाँ राजसी वैभव मेंबिताया है।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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