Re: जीवन चलने का नाम।
हम जंगल को देखते हैं, पर पेड़ों को नहीं हम जैसे–जैसे करीब जायेंगे, पहाड़, पेड़ साफ दिखायी देंगे। जंगल के भीतर बिलकुल नयी दुनिया होगी। बहुमूल्य पेड़, जड़ी–बूटियाँ। जो बाहर से बेकार था, भीतर जाने पर उसमे कीमती चीजें दिखाई पड़ती हैं। आदमी के साथ भी ऐसा ही होता है। कोई युवा परीक्षा में फेल हुआ और हम कह देते हैं की वह किसी काम का नहीं है। ’जीरो’ है। ओसफोर्ड से प्रकाशित अपनी किताब ‘शून्य के इतिहास’ में कैपलन ने निराशावाद को तार–तार कर दिया है। उनके शब्द हैं – जीरो को दूर से देखें, तो वह महज गोलाकार आकृति है, पर उसके भीतर देखें, तो पूरी दुनियां दिखेगी। टी विजयराघवन के साथ भी ऐसा ही हुआ। तमिलनाडु में जन्मे विजयराघवन गणित में डूबे रहते थे। नतीजा हुआ की वे बीए में फेल हो गये। बहुतों ने उनका मजाक उड़ाया। कई लोगों ने भविष्यवाणी कर दी की विजयराघवन अब कुछ नहीं कर सकते, पर वे निराश नहीं हुए। अपने प्रयास में लगे रहें। आखिर ऑक्सफोर्ड में गणित के उसी विद्वान हार्डी ने उनके भीतर की क्षमता को देखा, जिन्होने रामानुजन को पहचाना था। हार्डी के पत्र लिखने के बाद मद्रास विवि ने उन्हे वजीफा देने का निर्णय लिया। इसके बाद वे ऑक्सफोर्ड पहुंचे व हार्डी के साथ शोध में लगे। फिर तो उन्होने कई सवाल हल किये। वे 1925 तक मैथमेटिकल सोसाइटी, लंदन के सदस्य रहे। वे इंडियन मैथमेटिकल सोसाइटी के भी अध्यक्ष रहे। अगर आप भी परीक्षा में फेल हो जाएं और बात–बात पर जजमेंट देने को तैयार लोग आपको ‘जीरो’ कहें, तो भी आप निराश न हो। लक्ष्य की दिशा में बढ़ते रहें। हार्डी की तरह आपको भी पहचानने वाले आयेंगे। आप भी सफल होंगे।
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