Re: कुछ पल जगजीत सिंह के नाम :देवराज के साथ
तेरे खुशबु में बसे ख़त मैं जलाता कैसे,
जिनको दुनिया की निगाहों से छुपाये रखा,
जिनको इक उम्र कलेजे से लगाए रखा,
जिनका हर लफ्ज़ मुझे याद था पानी की तरह ,
याद थे मुझको जो पैगाम-इ-जुबानी की तरह,
मुझ को प्यारे थे जो अनमोल निशानी की तरह,
तूने दुनिया की निगाहों से जो बचाकर लिखे ,
सालाहा-साल मेरे नाम बराबर लिखे,
कभी दिन में तोह कभी रात में उठकर लिखे,
तेरे खुशबु में बसे ख़त मैं जलाता कैसे,
प्यार में दूबे हुए ख़त मैं जलाता कैसे,
तेरे हाथों के लिखे ख़त मैं जलाता कैसे,
तेरे ख़त आज मैं गंगा में बहा आया हूँ,
आग बहेती हुए पानी में लगा आया हूँ…
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मेरी चित्रशाला : दिल दोस्ती प्यार ....या ... .
तुमने मजबूर किया हम मजबूर हो गये ,...
तुम बेवफा निकले हम मशहूर हो गये ..
एक " तुम " और एक मोहब्बत तेरी,
बस इन दो लफ़्ज़ों में " दुनिया " मेरी..
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