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Originally Posted by soni pushpa
ये एक एइसा शब्द ...उन्हें सद बुध्धि दें .
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ईर्ष्या मानव मात्र का स्वभाव है। महाभारत और रामायण में भी ईसके कई उदाहरण उपलब्ध है। ईर्ष्या को दुर तो नहीं किया जा सकता लेकिन उस पर काबु किया जा सकता है। उसे अच्छे रास्ते पर मोडा जा सकता है।
मनुष्य के कई गुणों को दुर्गुण ईस लिए माना गया है क्यों की उनका उपयोग सही रीत से नहीं किया गया। ईर्ष्या का सही उपयोग आपके अंदर जीतने की या आगे जाने की शक्ति को बढाता है। लालच का छोटा अंश आपको व्यापार, नौकरी में अच्छा काम करने की प्रेरणा देता है। गुस्सा आपका जुस्सा बनाए रखता है।
ईन सब दुर्गुणो से हम कुछ अच्छा, बडा और समाज को उपयोगी काम करना चाहें तो कर सकतें है!