Re: भारतीय क्रिकेट में स्पिन गेंदबाजी के जाद&a
भले ही उस वक्त को याद करते हुए वह खुश हो सकते हों लेकिन देश में स्पिन गेंदबाजी की मौजूदा दशा और दिशा जरूर उनकी मुस्कराहट कम कर सकती है। वास्तव में अब आकर्षण के केंद्र की धुरी भारत की ओर से हट रही है, जहां इन चारों ने धीमी गति की गेंदबाजी के हुनर को संपूर्णता प्रदान करते हुए आसमानी बुलंदियों तक पहुंचाया।
हाल के समय के बेहतरीन फिरकी गेंदबाज शेन वॉर्न का ताल्लुक जहां ऑस्ट्रेलिया से रहा वहीं मुथैया मुरलीधरन का वास्ता श्रीलंका से। इस सुप्रसिद्घ चौकड़ी के बाद केवल अनिल कुंबले ही एक विश्वस्तरीय गेंदबाज के रूप में सामने आए और कुछ हद तक हरभजन सिंह को भी इस श्रेणी में रखा जा सकता है।
इनके अलावा लक्ष्मण शिवरामकृष्णन और नरेंद्र हिरवानी जैसे नाम भी चमके लेकिन वे महज 'चार दिन की चांदनी' ही साबित हुए। बेदी इसके लिए एकदिवसीय और ट्वेंटी-20 क्रिकेट जैसे खेल के संक्षिप्त संस्करणों को दोषी ठहराते हैं। वह पूछते हैं, 'स्पिनरों को अधिक आक्रामक होने की जरूरत है लेकिन ये छोटे संस्करण पूरी तरह से उन्हें मार रहे हैं।
वह कहते हैं, 'पिछले दो वर्षों में हरभजन सिंह की गेंदों को भांपना काफी आसान साबितहुआ है।' दूसरे शब्दों में कहें तो उनकी गेंदो में 'फिरकी की पहेली' कमहोती जा रही है। बेदी यहां तर्क देते हैं। अपने उत्कर्ष के दिनों में स्पिनगेंदबाजी चालाकी और चतुराई का मिश्रण होती थी। आमतौर पर स्पिनर बल्लेबाजोंको फंसाने के लिए सीमा रेखा के ऊपर से शॉट लगाने के लिए ललचाया करते थे।लेकिन एकदिवसीय और टी-20 मैच स्पिनरों को ऐसी आजादी नहीं लेने देते।
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
|