नेताओं के आँसू: असली या नक़ली
नेताओं के आँसू: असली या नक़ली
'घड़ियाली आँसू' मुहावरा पता नहीं कैसे और कब बना लेकिन ये तय है कि इसका सबसे ज़्यादा इस्तेमाल नेताओं के लिए होता है.
ये एक धारणा बन गई है कि किसी सूरत-ए-हाल पर नेता अगर आँसू बहाएगा तो वह दिखावे के लिए ही होगा, यानी उसका दिल दुखता ही नहीं.
क्या सार्वजनिक तौर पर बहाए गए आंसू किसी नेता की कमज़ोरी को दर्शाते हैं या उनके मानवीय पहलू को उजागर करते हैं?
अमरीकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने बहुत निपुणता से अपने भाषणों में आँसुओं का इस्तेमाल किया था. बाहर से काफी मज़बूत समझे जाने वाले विंस्टन चर्चिल भी संसद में आँसू बहाने से अछूते नहीं थे.
'आयरन लेडी' कही जाने वाली मारग्रेट थैचर की भी कई तस्वीरें हैं जब जिसमें अपनी सरकारी लिमोज़ीन में बैठे हुए किसी बात को सोच कर उनके होंठ काँप उठे थे.
महिलाओं के साथ तो दोहरी मुसीबत हैं. अगर वह रोएं तब भी बुरा और न रोएं तब भी बुरा!
2008 में बराक औबामा से इयोवा प्रायमरी हारने के बाद जब हिलेरी क्लिंटन रोईं तो उनके सहायकों को लगा कि इसका उन्हें राजनीतिक खामियाजा भुगतना पड़ेगा लेकिन वास्तव में इसका उन्हें फ़ायदा हुआ और महिलाओं के कई वोट उन्हें मिले.
लेकिन 1972 में एडमंड मसकी की अमरीका के राष्ट्रपति बनने की अभिलाषा सिर्फ इस लिए पूरी नहीं हो सकी क्योंकि अखबारों द्वारा उनकी पत्नी की आलोचना किए जाने पर वह सरेआम रोने लगे.
कुछ वर्ष पूर्व कनक्टीकट में हुए गोलीकांड में 20 बच्चों की मौत के बाद राष्ट्रपति ओबामा की आँखों से भी आँसू बह निकले.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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