Re: उपनिषदों का काव्यानुवाद
यच्छ्रोत्रेण न शृणोति येन श्रोत्रमिदं श्रुतम् ।
तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते ॥७॥
प्राकृतिक श्रोत्रों से मात्र जग श्रवणीय है संभाव्य है।
सामर्थ्य क्या हम सुन सकें, उस ब्रह्म का जो काव्य है॥
श्रुति इन्द्रियों के विषय से, परब्रह्म तो अतिशय परे।
सामर्थ्य इन्द्रियों में कहाँ, सम्पूर्ण जो वर्णन करे॥ [7]
|