Re: डार्क सेंट की पाठशाला
चोरी न करने का निर्णय
संजय बहुत अच्छा बच्चा था, पर उसको चोरी करने की बुरी आदत थी। अध्यापक उसे कई बार दंड और कई बार धमकी भी दे चुके थे, परंतु फिर भी वह बच्चों के बस्तों से उनकी चीजें चुरा लेता था। सभी का शक संजय पर ही था कि उनके बस्तों से वही चीजें चुराता है। आखिर एक दिन अध्यापक ने संजय को तेज आवाज में डांटते हुए कहा, यदि अब किसी भी बच्चे का सामान चोरी हुआ तो मैं तुम्हें पाठशाला से निकाल दूंगा। इस बात को कुछ दिन बीत गए। एक दिन एक बच्चा अचानक रोने लगा। अध्यापक के पूछने पर उसने बताया की उसकी गणित की किताब खो गई है । यह सुन अध्यापक बहुत नाराज हुए और उन्होंने उस बच्चे को सबके बस्ते में अपनी किताब ढूंढने को कहा। सभी के बस्तों में देखने के बाद आखिर किताब पंकज के बस्ते में से मिली। यह देख कर अध्यापक को बहुत आश्चर्य हुआ कि पंकज जैसा ईमानदार और मेहनती बालक भी चोरी कर सकता है। पूरी कक्षा में सन्नाटा छा गया। सब एकदम चुप होकर इधर-उधर देखने लगे, क्योंकि किसी को भी इस बात पर यकीन नहीं हो रहा था कि पंकज ऐसा कर सकता है। अध्यापक ने भी उसे कुछ नहीं कहा। सिर्फ आगे से ऐसा न करने को कह कर बैठा दिया। कुछ देर बाद अध्यापक के बाहर जाते ही संजय पंकज से पूछने लगा अरे, किताब तो मैंने चुराई थी, लेकिन वह तुम्हारे बस्ते में कैसे चली गई? पंकज ने कहा, यदि इस बार तुम पकड़े जाते, तो निश्चय ही अध्यापक तुम्हें पाठशाला से निकल देते। मैंने तुम्हें किताब उठाते और छिपाते हुए देख लिया था। फिर भी मैंने ऐसा किया क्योंकि मेरे अपमानित होने से तुम्हारा वर्ष बच गया और तुम्हारी मेहनत भी। संजय इस बात को सुन दुखी हुआ। उसने जीवन में कभी चोरी न करने का निश्चय किया और दूसरे ही दिन उसने पूरी कक्षा के सामने और अध्यापक के सामने अपनी गलती स्वीकार कर ली।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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