View Single Post
Old 11-04-2013, 12:09 AM   #41
rajnish manga
Super Moderator
 
rajnish manga's Avatar
 
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 241
rajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond reputerajnish manga has a reputation beyond repute
Default Re: इधर-उधर से

अब कुछ पत्राचार आपके साथ बांटना चाहता हूँ. यह पत्राचार मेरे और मेरे मित्रों के मध्य समय समय पर हुआ. अति व्यक्तिगत प्रसंग इनमे से संपादित किये गए हैं:
नकोट
19.04.1976

चिरंतन मित्र,

आपका पत्र लम्बे अरसे के उपरान्त पा कर जी को तसल्ली हुयी. भाई मैं एक ऐसे स्थान पर सेवारत हूँ जहाँ फैमिली साथ रखना असंभव सी बात है. इसलिए बिटिया अपनी माँ के साथ नजीबाबाद में है. साथ में एक कविता, या जो कुछ भी हो, मुझे बहुत पसंद है, लिख कर भेज रहा हूँ जो कि बाजार से मंगवाई हुयी वस्तु के लिफ़ाफ़े पर छपी है....

स्नेहाधीन,
महावीर

संलग्न कविता:-

प्रगाढ़ संबंधों का रस
तब रिसने लगता है
जब “मैं और तुम” को
जोड़ने वाला सेतु टूटने लगता है.
फिर हम लाख प्रयत्न करें
सम्बन्धों का धागा नहीं बुन पाते.
क्योंकि उसे तो वह प्रेम रुपी
मकड़ी ही बुन सकती है
जो मर चुकी होती है –
संबंधों के बिखराव के साथ ही.
अपने तर्क में यह मुहावरा
क्यों लायें कि सूर्य से
उसकी किरण अलग नहीं हो सकती
जब कि हम जानते हैं
कि हम सूर्य नहीं हैं
तब इस बात की सावधानी
रखनी चाहिए कि
चन्द्रमा से चांदनी अलग न होने पाये.
एकाकीपन का एहसास अति कठिन होता है,
वैसे समय रिक्तता को भर देता है
यह अलग बात है.
*****

Last edited by rajnish manga; 11-04-2013 at 12:12 AM.
rajnish manga is offline   Reply With Quote