13-04-2013, 07:31 PM
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#47
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Re: इधर-उधर से
महावीर सिंह का पत्र
प्रिय मित्र रजनीश,
सच कहता हूँ अब भी जब तब
याद तुम्हारी आ जाती है.
मेरे इस बीहड़ पथ से तुम,
अपनी सुरभि लुटा जाते हो,
मेरे मानस नभ में आकर
बिजली सी चमका हो.
अपनी परवशता पर मैं जब
आंसू चार बहा लेता हूँ,
जग को जीवन मिल जाता है,
मैं मन को बहला लेता हूँ.
यों मेरी जीवन अभिलाषा
दुःख में भी सुख पा जाती है
सच कहता हूँ अब भी जब तब
याद तुम्हारी आ जाति है.
तुम कहते मैं निर्मम हूँ
मैं कहता जग निर्मम है,
किन्तु हमारा दोनों का ही
निर्मम कहना भ्रम ही भ्रम है.
एक नियति के इंगित पर ही,
हम तुम क्या सब दुनिया चलती,
छलना नाना रूप बना कर
हमको तुमको सबको छलती.
छलना के नाना रूपों में
अपनी बुद्धि हिरा जाती है,
सच कहता हूँ अब भी जब तब
याद तुम्हारी आ जाती है.
अब तो जाने जैसे तैसे
कैसे जीवन बीत रहा है,
अपने में ही पल पल जल जल
जीवन का रस रीत रहा है.
एक यंत्रवत चलती रहती
मेरे इस मानव की काया,
जिसके संचालन में दिन भर
भूला रहता मम्मता माया,
अर्ध-रात्रि के सपनों में, पर
तेरी मुख छवि छ जाती है.
सच कहता हूँ अब भी जब तब
याद तुम्हारी आ जाती है.
जीवन में विश्वास नहीं है
फिर भी तो जीता जाता हूँ,
जीवन मदिरा में मादकता
नहीं, किन्तु पीता जाता हूँ.
यहाँ कर्म पथ अब पहले है
पीछे है भावुकता रानी,
पथ दुर्गम है, मैं एकाकी,
फिर भी चलता हूँ कल्याणी.
पर इस पथ में मधु अतीत के
तव सुधि चित्र बना जाती है,
सच कहता हूँ अब भी जब तब
याद तुम्हारी आ जाती है.
मार्ग भिन्न है किन्तु एक है
लक्ष्य, हमारा यह प्रिय जानो,
अपने अपने पथ पर चलने
में ही, प्राण ! प्रेम पहचानो,
दूर क्षितिज के पार वहाँ फिर
हम तुम दोनों मिल ही लेंगे,
सब अभिशाप यहाँ से लेकर
हम वरदान विश्व को देंगे,
श्रापों पर वरदान-रश्मि सी
सदा साधना मुस्काती है,
सच कहता हूँ अब भी जब तब
याद तुम्हारी आ जाती है.
महावीर (4.2.1977)
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