Re: इधर-उधर से
मानवसेवा ही सच्ची ईश्वर सेवा है
(लियो टॉलस्टॉय की कहानी का एक अंश)
एलिशा उन तीनों प्राणियों की सेवा में लग गया। सुबह होते ही उसने घर की सफाई की, चूल्हा जलाया और भोजन बनाया। घरके लिए आवश्यक सामग्री खरीद लाया। एक दिन, दो दिन औरफिर तीन दिन बीत गए। उसे समझ में नहीं आता था कि क्या करे। एक ओर वह सोचता कि मुझे जाना चाहिए, लेकिन दूसरी ओर उन लोगों की दशा देखकर उनका हृदय भर आता था। अंत में एलिशा ने उन लोगोंके साथ ही रुकने का निश्चय किया। उसकी सेवा से उन तीनों प्राणियों में शक्ति आ गई।
एलिशा ने उन लोगोंके दूध्के लिए एक गाय और खेत जोतनेके लिए एक घोड़ा खरीदा। साथ ही फसल आने तकके लिए अनाज भी खरीदकर रख दिया। एक दिन एलिशा ने सुना कि बूढ़ीस्त्री अपने बेटे से कह रही थी - "बेटा! यह मनुष्य नहीं, देवदूत है। ऐसे भले मनुष्य संसार में अधिक नहीं हैं।" एलिशा ने जब अपनी प्रशंसा सुनी तो उसने सोचा कि मुझे यहाँ से चल देना चाहिए। इन लोगोंके
लिए मैंने अगली फसल तकके लिए प्रबंध् कर ही दिया है।
अगले दिन जब घरके सब लोग गहरी नींद सो रहे थे, वह चुपचाप चल पड़ा। उसके पैसे समाप्त हो चुके थे। इसलिए उसने जेरुसलेम जाने का विचार छोड़ दिया और घर की ओर चल पड़ा।
घर पहुँचने पर उसके परिवारके लोग बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने पूछा - "क्या आप जेरुसलेम हो आए? एफिम कहाँ है?” एलिशा ने उन लोगों कोकुछ नहीं बताया, केवल इतना कहकर टाल दिया कि ईश्वर की इच्छा नहीं थी कि मैं वहाँ जाऊँ। मेरा साराधन मार्ग में ही समाप्त हो गया, अतः मैं एफिम के साथ नहीं जा सका और रास्ते से ही लौट आया।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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