Re: इधर-उधर से
मास एक्सपेरीमेंट या समूह प्रयोग
(ओशो के वचनों पर आधारित)
सिंगापुर के पास एक छोटे से द्वाप पर जब पहली दफा पश्चिमी लोगों ने हमला किया तो वे बड़े हैरान हुए। जो चीफ़ थ, जो प्रमुख था कबीले का, वह आया किनारे पर, और जो हमलावर थे उनसे उसने कहा कि हम निहत्थे थे लोग जरूर है। पर हम परतंत्र नहीं हो सकते। पश्चिमी लोगों ने कहा कि वह तो होना ही पड़ेगा। उन कबीले वालों ने कहा, हमारे पास लड़ाई का उपाय तो कुछ नहीं है, लेकिन हम मरना जानते हे—हम मर जांएगे। उन्हें भरोसा नहीं आया कि कोई ऐसे कैसे मरता है, लेकिन बड़ी अद्भुत घटना है।
ऐतिहासिक घटनाओं में एक घटना घट गयी। जब वे राज़ी नहीं हुए और उन्होंने कदम रख दिया, द्वीप पर उतर गए, तो पूरा कबीला इकट्ठा हुआ। कोई पाँच सौ लोग तट पर इकट्ठे हुए और वह देखकर दंग रह गए कि उनका प्रमुख पहले मर कर गिर गया। और फिर दूसरे लोग मरकर गिरने लगे। मरकर गिरने लगे बिना किसी हथियार की चोट के। शत्रु घबरा गए, यह देख कर। पहले तो उन्होंने समझा कि लोग डर कर ऐसे ही गिर गए होंगे। लेकिन देखा वह तो खत्म ही हो गए। अभी तक साफ़ नहीं हो सका कि यह क्या घटना घटी, असल में हम की कांशेसनेस अगर बहुत ज्यादा हो तो मृत्यु ऐसी संक्रामक हो सकती है। एक के मरते ही फैल सकती है।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
Last edited by rajnish manga; 25-09-2014 at 08:48 PM.
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