Re: इधर-उधर से
मास एक्सपेरीमेंट या समूह प्रयोग— यह एक ऐसा प्रयोग है जिसके ज़रिये अधिकतम विराट पैमाने पर उस अनंत शक्ति को उतारा जा सके। और जब लोग सरल थे तो यह घटना बड़ी आसानी से घटती थी। उन दिनों तीर्थ बड़े सार्थक थे। तीर्थ से कभी कोई खाली हाथ नहीं लौटता था। इसलिए … तो आज आदमी खाली लौट आता है, खाली लौट आने पर आदमी फिर दोबारा चला जाता है। उन दिनों तो ट्रांसफार्म होकर लौटता था ही। पर वह बहुत सरल और इनोसेंट समाज की घटनाएं है। क्योंकि जितना सरल समाज हो, जहां व्यक्तित्व का बोध जितना कम हो, वहां तीर्थ का यह प्रयोग काम करेगा, अन्यथा नहीं करेगा।
तो जब समाज बहुत ‘’हम’’ के बोध से भरा था और ‘’मैं’’ का बोध बहुत कम था तब तीर्थ (इसमें कुंभ भी शामिल है) बड़ा कारगर था। यह समझ लीजिये कि उसकी उपयोगिता उसी मात्रा में कम हो जाएगी, जिस मात्रा में ‘’मैं’’ का बोध बढ़ जाएगा।
**
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
|