Re: इधर-उधर से
वह हिन्दू भी था और मुसलमान भी
बदीउज्ज़मां के उपन्यास “छाको की वापसी” का पात्र ‘ढल्लन सिंह’
उपरोक्त उपन्यास का पात्र ‘ढल्लन सिंह’ एक अनोखा पात्र है जो अपनी प्रेमिका से विवाह करने की खातिर मुसलमान हो जाता है. परन्तु क्या वास्तव में वह मुसलमान हो पाया? यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है जो हमें कई बुनियादी बातों के बारे में सोचने पर मजबूर कर देता है. एक धर्म से दूसरे धर्म में प्रवेश कर जाने से क्या दूसरे धर्म की सारी बुनियादी बातों के साथ तादात्म्य हो जाता है ? क्या धर्म कोई ऐसी चीज है जो कपड़ों की तरह उतारी जा सकती है और बदली जा सकती है. क्या यह संभव है कि एक धर्म ने हमें जो संस्कार दिए हैं क्या उनको उतार कर हम फेंक सकते हैं ? चाहे हम वाह्य रूप से पुराने धर्म से कट चुके हों, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि उससे हम फिर भी जुड़े रहते हैं. बकौल उपन्यास-लेखक इसकी एक मिसाल स्वयं इस्लाम के इतिहास से मिल जाती है. मक्के के बहुत सारे लोग जो इस्लाम स्वीकार करने से पहले मूर्तिपूजक थे. वे जब इस्लाम धर्म में आये तो उनमे से कितने ही लोग मस्जिदों में अपनी आस्तीनों में मूर्तिया छिपा कर ले जाते थे.
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
Last edited by rajnish manga; 28-09-2014 at 04:02 PM.
|