Re: इधर-उधर से
सवाल उठता है कि क्या ढल्लन सिंह औपचारिक रूप से मुसलमान होने के बाद भी क्या अपने हिंदुत्व का पूरी तरह त्याग कर देता है. नहीं, ऐसा करना शायद संभव नहीं है. वह हिंदुत्व और मुस्लिमत्व के बीच घड़ी के पेंडुलम की तरह झूलने के लिए ही बना है. उसके नए मुस्लिम नाम के बावजूद उसे ढल्लन सिंह के नाम से ही पुकारा जाता है – मुसलमानों और हिन्दुओं दोनों द्वारा. वह अपने पुराने समाज से कट भी जाता है और जुड़ा भी रहता है. नया रिश्ता बना अवश्य है किन्तु यह संस्कारगत नहीं हो पाता. इसीलिए अपने जीवन के अंतिम क्षणों में जब वह चेतना-शून्य हो जाता है तो उस समय उसके मुंह से केवल राम – राम ही निकलता है. कहा जा सकता है कि वह न हिन्दू है और न मुसलमान. या यह कह सकते हैं कि वह हिन्दू भी है और मुसलमान भी. सआदत हसन मंटो के टोबा टेक सिंह के परिवेश की तरह जो न इधर है न उधर. या फिर इधर भी है और उधर भी. किसी एक जगह बंधा हुआ नहीं है.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
Last edited by rajnish manga; 28-09-2014 at 04:03 PM.
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