Re: इधर-उधर से
प्रख्यात लेखक अमृतलाल नागर के जीवन काल में
एक पाठक के उद्गार:
लेखन प्रतिभा के धनी, करते सृजन रसाल,
छलकायें अमृत सदा, नागर अमृतलाल.
नागर अमृतलाल, शान लखनऊ शहर की,
पद्म-विभूषित, सुरभित संपति भारत भर की
कह “राजेश” चिरायु हों, फैले सुयश प्रचंड,
युगों युगों साहित्य के , बनें रहें मार्तंड.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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