Re: ~!!आनन्दमठ!!~
धीरानंद बाहर चले गए। सत्यानंद और महेंद्र कारागार में ही रहे।
जीवानंद बोले-जानती है, आदमियों का शिकार करना ही मेरा काम है। मैंने अनेक आदमियों का शिकार किया है।
अब निमी भी क्रोध में आई। बोली-खूब किया! अपनी पत्**नी का त्याग कर दिया और आदमियों की जान ली। क्या समझते हो, इससे मैं मान जाऊंगी? बहुत करोगे मारोगे, लेकिन मैं डरनेवाली नहीं हूं! तुम जिस बाप के लड़के हो, मैं भी उसी बाप की लड़की हूं। आदमियों का खून करने में यदि बड़ाई की बात हो, तो मुझे भी मारकर बड़ाई प्राप्त करो।
जीवानंद हंसकर बोले-अच्छा बुला ला- किस पापिनी को बुलाएगी-जा बुला! लेकिन देख आज के बाद कहेगी तो उस साले के भाई व साले को सिर मुंड़ाकर गदहे पर चढ़ाकर गांव के बाहर निकलवा दूंगा।
निमी ने मन ही मन सोचा-हुई न मेरी जीत यह सोचती हुई वह घर के बाहर निकल गई। इसके बाद पास ही एक झोंपड़ों में वह जा घुसी। कुटी में सैकड़ों पैबन्द लगे हुए कपड़े पहने, रुक्ष-केशी एक युवती बैठी चरखा कात रही थी। निमाई ने जाकर कहा-भाभी! जल्दी करो। भाभी ने कहा-जल्दी क्या? नन्दोई ने तुझे मारा है, तो उनके सर में तेल मलना है क्या?
निमी-बात ठीक है। घर में तेल है?
उस युवती ने तेल की शीशी सामने खिसका दी। निमाई ने झट अंजली में ऊंड़ेलकर उस युवती के रूखे बालों में लग दिया। इसके बाद झट जूड़ा बांध दिया। फिर चपत जमाकर बोली-तेरी ढाके-वाली साड़ी कहां रखी है, बोल? उस स्त्री ने कुछ आश्चर्य से कहा-क्यों जी! कुछ पागल हो गई हो क्या?
निमाई ने एक मीठा घूंसा जमाकर कहा-निकाल साड़ी जल्दी!
तमाशा देखने के लिए युवती ने भी साड़ी बाहर निकाल दी। तमाशा देखने के लिए क्योंकि इतनी तकलीफ पड़ने के बाद भी उसका सदा प्रफुल्ल रहनेवाला हृदय अभी भी वैसा ही था। नवयोवन-फूले कमल-जैसा उसकी नई उम्र का यौवन-तेल नहीं, सजावट नहीं, आहार नहीं, फिर भी उसी मैली पैबन्दवाली धोती के अंदर से भी वह प्रदीप्त, अनुपमेय सौन्दर्य फूट पड़ता था। वर्ण में छायालोक की चंचलता, नयनों में कटाक्ष, अधरों पर हंसी, हृदय में धैर्य- मेघ में जैसे बिजली, जैसे हृदय में प्रतिमा, जैसे जगत के शब्दों में संगीत और भक्त के मन में आनंद होता है, वैसे ही उस रूप में भी कुछ अनिर्वचनीय गौरव भाग, अनिर्वचनीय प्रेम, अनिर्वचनीय भक्ति। उसने हंसते-हंसते (लेकिन उस हंसी को किसी ने देखा नहीं) साड़ी निकाल दी। बोली-निमी! भला बात तो, क्या होगी।
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