Re: पारख साहब के दिलचस्प किस्से
अपनी बेटी के ससुराल में पहुँच कर उसे ऐसा लगा जैसे वह किसी दूसरे लोक में आ गया हो. यहाँ का रंग ढंग देख कर तो उसने अपने दांतों तले उंगली दबा ली. दोपहर के खाने के बाद, ससुर ने दामाद के नज़दीक आ कर पूछा,
“अरे बेटा, यह मैं क्या देख रहा हूँ? तूने तो चमत्कार कर दिया. मैं सोच रहा था कि मेरी बेटी यहाँ पर अपनी आज्ञा चलवाती होगी और तुम गुलाम की तरह उसकी हर आज्ञा का पालन कर रहे होगे. मगर मैं देख रहा हूँ कि मेरी बेटी तेरे इशारों पर नाचती है. ऐसा कैसे हुआ? तुमने ये क्या कर दिया?”
दामाद को पहले से ही ऐसे प्रश्न की आशंका थी. वह बोला,
“मैंने तो पिता जी, कुछ भी नहीं किया. मैं तो अब भी उसकी हर आज्ञा मानने को तैयार हूँ क्योकि मैंने वचन दिया है”.
फिर उसने अपने आदमी को दो सुराही लाने को कहा – एक पुरानी पकी हुयी और दूसरी कच्ची मिट्टी की. जब दोनों सुराही आ गयीं तो दामाद ने उन्हें दोनों हाथों में ले कर फर्श पर गिरा दिया. जिससे दोनों सुराही टूट गयीं. दामाद ने अपने नौकर से कहा कि जाओ और इन दोनों सुराहियों को ले जा कर कुम्हार से ठीक करवा कर ले आये.
नौकर थोड़ी देर बाद वापिस आ कर बोला,
“हुजूर, कुम्हार ने कच्ची मिट्टी वाली सुराही तो मरम्मत कर के दे दी लेकिन पुरानी सुराही उसने वैसी की वैसी यह कह कर लौटा दी कि नयी वाली सुराही तो मैं एक बार और मरम्मत कर के दे सकता हूँ, लेकिन पुरानी वाली तो अब दोबारा तैयार नहीं कर सकता. उसको तो भगवान ही ठीक कर सकता है”.
यह बात ससुर और युवक ने एक साथ सुनी. तदुपरांत, युवक अपने ससुर की ओर देख कर बोला,
“सो पिता जी, यही बात हमारे घरों पर भी लागू होती है. आपको एक लम्बी अवधि हो चुकी है, उस वातावरण में रहते हुए और मैंने अभी यात्रा शुरू ही की है और सुधार कर लिया है. आपका तो भगवान् ही मालिक है”.
यह सुन कर वृद्ध जाने के लिए उठ खड़े हुए.
(30/11/1976)
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