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Old 04-02-2016, 09:07 PM   #2
rajnish manga
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Default Re: सहिष्णुता और असहिष्णुता की बहस

असहिष्णुता को पहले समझ लें

असहिष्णुता को लेकर बहस चारों ओर चल रही है लेकिन सही मायनों में असहिष्णुता शब्द का मतलब क्या है और इसका प्रयोग किस लहजे में किया जाता है यह जानना भी जरूरी है। हमने विद्वानों से जाना आखिर क्या है असहिष्णुता।
एक धर्म के इर्द-गिर्द घूम रही है बहस
लखनऊ यूनिवर्सिटी में हिंदी डिपार्टमेंट के प्रोफेसर पवन अग्रवाल के मुताबिक असहिष्णुता का मतलब विद्रोह से है। अगर आप किसी धर्म, जाति आदि के विचारों को बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं तो आप असहिष्णु हो रहे हैं। इन दिनों असहिष्णुता को लेकर जो बहस चल रही है वह एक धर्म के इर्द-गिर्द ही है जिसको लेकर तमाम नेता अपने बयान दे रहे हैं।
जो सहन न किया सके
जेएनपीजी कॉलेज के हिंदी डिपार्टमेंट के असिस्टेंट प्रोफेसर रमेश प्रताप सिंह के मुताबिक असहिष्णुता शब्द का अर्थ होता है जो सहन न किया सके। यानि अगर कोई किसी बात को सहन नहीं कर सकता तो वे असहिष्णु हो जाता है।
सामाजिक व्यवहार में सहनशील न होना
लखनऊ यूनिवर्सिटी में जर्नलिज्म एवं मास कम्युनिकेशन डिपार्टमेंट के असिस्टेंट प्रोफेसर मुकुल श्रीवास्तव के मुताबिक असहिष्णुता का शाब्दिक अर्थ सामाजिक व्यवहार में सहनशील न होना है। आज की स्थिति में इसका तात्पर्य किसी धर्म या विचारधारा को सहन न कर पाने से है।
जो पसंद न हो उसे बर्दाश्त करना
एलयू के पॉलिटिकल साइंस डिपार्टमेंट के असोसिएट प्रोफेसर कविराज के मुताबिक असहिष्णुता को लेकर जो बहस छिड़ी है वे धर्म से जोड़कर की जा रही है। इसका शाब्दिक अर्थ है कि जो पसंद न हो उसे बर्दाश्त करना है। अगर पॉलिटिकल साइंस से इसको जोड़ा जाए तो ऩेता इसे एक विशेष वर्ग से जोड़कर इस्तेमाल कर रहे हैं।
जो आपसे भिन्न हो उसे बर्दाश्त न करना
वरिष्ठ साहित्यकार अखिलेश के मुताबिक असहिष्णुता का मतलब जो आपसे भिन्न हो उसे बर्दाश्त न करना है। यानि की जिसके विचार आपसे मिलते न हों उसे अगर आप बर्दाश्त न कर सकें। इसमें केवल धर्म या जाति विशेष ही नहीं बल्कि दूसरे मुद्दे भी हो सकते हैं।
दूसरों के विचार न मानना
यूपीटीयू के वाइस चांसलर विनय कुमार पाठक का असहिष्णुता को लेकर कहना है कि दूसरे के विचारों को न मानना अहिष्णुता है। या यूं कहें कि दूसरे के विचारों का सम्मान न करने वाले असहिष्णु कहला रहे हैं।
क्या है असहिष्णुता
'सुखी परिवार समृद्ध राष्ट्र' किताब के मुताबिक, माना जाता है कि असहिष्णुता मानव जाति में कभी खत्म नहीं होती है। इसकी वजह से युद्ध छिड़े हैं, धार्मिक उत्पीड़न हुआ है। धर्मांधता, रुढ़िवादिता, लांछन लगाना, अपमान करना, जाति संबंधी मजाक उड़ाना, ये सब व्यक्तिगत असहिष्णुता की निशानी है। असहिष्णुता से असहिष्णुता उपजती है।


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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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