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Originally Posted by rajnish manga
"पिताजी..पिछले साल मेरे भाई की शादी हुई थी। मेरे मायके की माली हालात बहुत ज्यादा बढिया नही है। इन छुट्टियों में जब मैं वहां रहने गई तो मैने अपने माता पिता को एक एक चीज के लिए तरसते देखा.. बात बात पर भाभी के हाथों तिरस्कृत होते देखा..मेरा भाई चाहकर भी कुछ नही कर सकता था। मैं वहां उनके साथ हो रहे बर्ताव से बहुत दुखी थी। उस वक्त मुझे अपनी करनी याद आ रही थी.. कि किस तरह का सलूक मैंने आप दोनो के साथ किया था। किसी ने यह बात सच ही कही है कि जैसा बोओगे वैसा काटोगे। मैं अपने मां बाप का भविष्य तो नही बदल सकती लेकिन खुद को बदल कर मैं ये उम्मीद तो अपने आप में जगा ही सकती हूं कि कभी मेरी भाभी में भी बदलाव आएगा और मेरे मां बाप भी सुखी होंगे...बहू की बात सुनकर मेरी आंखे भर आई। मैने बहू को खींचकर गले से लगा लिया.."हां बेटा अवश्य एक दिन अवश्य ऐसा होगा...ठोकर सबको लगती है लेकिन सम्भलता कोई कोई ही है लेकिन हम दुआ करेंगे कि तुम्हारी भाभी भी सम्भल जाए..
बहू अब भी रोए जा रही थी उसकी आंखों से जो आंसू गिर रहे थे वो शायद उसके पिछली गलतियों के प्रायश्चित के आंसू थे....!
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बहुत सुन्दर कहानी भाई धन्यवाद .. सच कहा पिछली गलतियों के कोई ही प्रयाचित कर सकता है हरकोई नहीं क्यूंकि इंसान का अहम् आड़े आता है ..
आज के समाज को अछि सिख दी गई है इस कहानी के माध्यम से भाई