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Originally Posted by deep_
यही तो मसला है की पैसे वालों को दिखावे का शौक है । उनकी यही आदत 'स्टेटस' बन जाती है जिसे आम आदमी प्राप्त करना चाहता है। उसी के लिए वह अपने आप को घिसता रहता है।
आपको जान कर खुशी होगी की हमारे गांव में दहेज प्रथा है ही नहीं। सिर्फ कन्यादान में अगर किसीने एकाद फर्निचर, तीजोरी, स्टील के घडे, दिवार-घडी दे दी तो बहुत हो गया। ईस में भी गांववाले, रिश्तेदारो की मदद होती है।
लेकिन जब लोग खेती के अलावा नौकरी करने लगे और अच्छा पैसा कमाने लगे....उन्हों ने खर्चा करना शुरु कर दिया। उनको देख कर अब गरीब लोग भी चाहते है की उनकी बारात ईनोवा कार में जाए, मंहगे कपडे सिलवाए, बडा पंडाल बना कर बुफे डीनर करवाए ।
साथ साथ दूल्हेवालों के बिना मांगे ज्यादा फर्निचर, गहने आदि देने का चलन बढ गया है। यह वर्तन लडकेपक्ष वालों को चाबी दे रहा है....मांग करने के लिए। मुझे ईस बात से असंतोष है।
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Originally Posted by deep_
यही तो मसला है की पैसे वालों को दिखावे का शौक है । उनकी यही आदत 'स्टेटस' बन जाती है जिसे आम आदमी प्राप्त करना चाहता है। उसी के लिए वह अपने आप को घिसता रहता है।
आपको जान कर खुशी होगी की हमारे गांव में दहेज प्रथा है ही नहीं। सिर्फ कन्यादान में अगर किसीने एकाद फर्निचर, तीजोरी, स्टील के घडे, दिवार-घडी दे दी तो बहुत हो गया। ईस में भी गांववाले, रिश्तेदारो की मदद होती है।
लेकिन जब लोग खेती के अलावा नौकरी करने लगे और अच्छा पैसा कमाने लगे....उन्हों ने खर्चा करना शुरु कर दिया। उनको देख कर अब गरीब लोग भी चाहते है की उनकी बारात ईनोवा कार में जाए, मंहगे कपडे सिलवाए, बडा पंडाल बना कर बुफे डीनर करवाए ।
साथ साथ दूल्हेवालों के बिना मांगे ज्यादा फर्निचर, गहने आदि देने का चलन बढ गया है। यह वर्तन लडकेपक्ष वालों को चाबी दे रहा है....मांग करने के लिए। मुझे ईस बात से असंतोष है।
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धन्यवाद दीप जी इस सूत्र को आगे बढाने के लिए .. ये तो बेहद ख़ुशी की बात है की आपके गाँव में दहेज़ प्रथा बिलकुल भी नहीं है आपके गाव के लोगो से हमारे देश के दहेज़ के लिए बहुओं को आग में झोंक देने वाले लोगो को सिख लेनी चाहिए ...
आपकी बात का दूसरा हिस्सा ही है जो समाज के लिए अब समस्या बनता जा रहा है ये ही की शादी में दिखावा , बेकार के खर्च और देखादेखी की वजह से शादी में धामधूम का रिवाज ..
न जाने लोग कब समझेंगे की खुशियाँ मन में होती है दिखावे में नहीं और मन की खुशियाँ तो कम खर्च में भी इंसान प्राप्त कर ही सकता है न ? आज की महंगाई की मार पूंजीपतियों के आलावा हरेक इन्सान पर है और हमे ये भी नहीं पता की ये महंगाई कहाँ जाकर रुकेगी दिन ब दिन बढ़ोतरी ही है इसमें ...
यदि हम बचत करके खुद के लिए भी रखते हैं धन को तो वो भविष्य में हमें ही काम आएगा. भले आप दान धरम की बात न भी सोचो ना दान करना चाहो न करो खुद का भविष्य ही संवर जा य इतना काफी है ..पर नहीं आज लोग दिखावे में ही ज्यदा समझते हैं ...
कही एक गरीब दो टाइम की रोटी को तरसता है और कहीं शादी के बुफे लंच और डिनर की प्लास्टिक प्लेट्स पकवानों से भरी कचरे के डब्बे में जाती है वो भी सिर्फ झूठे दिखावे की वजह से ...