Re: टीवी समाचार मीडिया में उत्पात
क्रिकेट हो या पाकिस्तान या कुछ सनसनी और संवेदनात्मक उभार वाला मामला आप पाएंगे कि टीवी समाचार कक्षों और स्टूडियो में कयामत सी आ जाती है. युद्ध के मैदान सज जाते हैं और दुंदुभियां सरीखी बजने लगती हैं, अट्टाहस, ललकार, हुंकार और हाथों को रगड़ना, फटकारना, गर्दन का झटकना तो जो है सो है. हिंदी और अंग्रेज़ी के चैनलों के स्वनामधन्य एंकरों को आप सेनापतियों की तरह देखने लगें तो क्या अचरज. और फिर समूचे टीवी स्क्रीन पर बड़े बड़े टाइप साइज़ में कुछ शब्द- अपनी गरिमा, सामर्थ्य और आत्मा से वंचित और चीखते हुए वॉयसओवर, लुढकते हुए बहुत सारे भारी पत्थर, बोल्डर. दर्शकों को और विचलित और असहाय और स्तब्ध करते हुए.
इस तरह रात आठ बजे से दस बजे के दरम्यान आप देखते हैं कि ये कुश्ती स्पर्धा इतनी रेगुलर हो गई है कि कई बार स्टूडियो गेस्ट की राय से ऑडियंस पहले ही वाकिफ रहती है. ऐंकर का भी लक्ष्य यही जान पड़ता है कि उसे मेहमानों को लड़ाना है और अंततः सबको धूल धूसरित करते हुए सब पर और सारे तर्कों पर विजय पानी है. इससे होता क्या है. कोई गंभीर मुद्दा इस अतिनाटकीयता और इस करीब करीब हिंसा के हवाले हो जाता है. बहसें दर्शकों को आखिरकार ठगा सा बनाकर अगले कार्यक्रम को रवाना होने के लिए ब्रेक ले लेती हैं.
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