Re: **गृहलक्ष्मी **
इस विचारोत्तेजक आलेख के लिये आपको हार्दिक धन्यवाद, सोनी जी. आपने समाज के केन्द्र में स्थित परिवार और परिवार के केन्द्र में स्थित गृहलक्ष्मी के विषय में जो कुछ लिखा है, उससे इनकार नहीं किया जा सकता. स्त्री अपने व्यक्तिगत सुख-दुःख की परवाह किये बिना घर के अंदर के विभिन्न रिश्तों के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाह करती है. सुबह से शाम तक काम करते करते वह थक कर चूर हो जाती है. किसी को उसकी इस स्थिति का अहसास तक नहीं होता. सब लोग सोचते हैं कि यह तो रोज का रूटीन है, इसमें नया क्या हो गया? कोई उत्साह बढ़ाने वाली बात नहीं करता. वह पति के या सास ससुर या बच्चों के मुख से दो मीठे बोल सुनने के लिए तरस जाती है. ऐसी अवस्था में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की क्या अहमियत है?
उपरोक्त प्रश्नों को उठाने के साथ साथ आपने अपनी ओर से कुछ व्यवहारिक सुझाव भी दिए हैं, जिन पर संवेदनशीलता से विचार व मनन करने की आवश्यकता है. नारी को उसके घर में या समाज में यदि उचित सम्मान (संविधान में स्त्री और पुरूष को समान दर्जा दिया गया है) नहीं प्राप्त होता तो उसकी स्थिति किसी गुलाम से बेहतर नहीं कही जा सकती जिसकी अपनी कोई आवाज़ या अपनी कोई हैसियत नहीं होती. आइये इस अवसर पर हम अपने भीतर झाँक कर नारी के प्रति अपने दृष्टिकोण की समीक्षा करें और यदि उसमें किसी बदलाव की ज़रूरत है तो बदलाव लाने की ईमानदार कोशिश करें ताकि नारी को एक देवी की नहीं तो कम से कम नारी (या इंसान) की गरिमा तो प्राप्त हो !!
एक बार फिर से आपका धन्यवाद, सोनी जी. इस अवसर पर दीप जी को भी धन्यवाद कहना चाहता हूँ.
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
|