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छींटे और बौछार
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09-09-2014, 04:23 PM
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395
jai_bhardwaj
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Re: छींटे और बौछार
कभी जब आँख उठती थी, गगन से फूल झरते थे
कभी जब आँख झुकती थी, दिलों में शूल उठते थे
समय का चक्र घूमा 'जय' कि वह मझधार में डूबा
कभी जिसको सरलता से, हजारों कूल मिलते थे ||
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।
कभी कभी -->
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