01-01-2015, 09:48 PM
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Re: खलील जिब्रान और उनकी रचनायें
खलील जिब्रान/बोध कथा- गुलामी
राजसिंहासनपर सो रही बूढ़ी रानी को चार दास खड़े पंखा झल रहे थे और वह मस्त खर्राटेले रही थी। रानी की गोद में एक बिल्ली बैठी घुरघुरा रही थी और उनींदी आंखोंसे गुलामों की ओर टकटकी लगाए थी।
एक दास ने कहा, ‘‘यह बूढ़ी औरत नींद में कितनी बदसूरत लग रही है। इसका लटकाहुआ मुँह तो देखो, ऐसे भद्दे ढंग से साँस ले रही है मानों किसी ने गर्दनदबा रखी हो।’’
तभी बिल्ली घुरघुराई और अपनी भाषा में बोली, ‘‘सोते हुए रानी उतनी बदसूरतनहीं लग रही जितना कि तुम जागते हुए अपनी गुलामी में लग रहे हो।’’
तभी दूसरा दास बोला, ‘‘सोते हुए इसकी झुर्रियां कितनी गहरी मालूम हो रही हैं, जरूर कोई बुरा सपना देख रही है।’’
बिल्ली फिर घुरघुराई, ‘‘तुम जागते हुए आजादी के सपने कब देखोगे?’’
तीसरे ने कहा, ‘‘शायद यह सपने में उन लोगों को जुलूस की शक्ल में देख रही है, जिनको इसने निर्ममता से कत्ल करवा दिया था।’’
बिल्ली अपनी जबान में बोली, ‘‘हाँ, वह तुम्हारे बाप दादाओं और बड़े हो रहे बच्चों के सपने देख रही हेै।’’
चौथे ने कहा, ‘‘इस तरह इसके बारे में बातें करने से अच्छा लगता है, फिर भीखड़े–खड़े पंखा करने से हो रही थकान में तो कोई फर्क नहीं पड़ रहा।’’
बिल्ली घुरघुराई,‘‘तुम्हें अनन्तकाल तक इसी तरह पंखे से हवा करते रहना चाहिए...’’
ठीक इसी समय रानी ने नींद में सिर हिलाया तो उसका मुकुट फर्श पर गिर गया।
उनमें से एक दास बोला, ‘‘यह तो अपशकुन है।’’
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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