02-01-2015, 09:18 AM
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Re: खलील जिब्रान और उनकी रचनायें
खलील जिब्रान
शैतान
“एक पुजारी होकर क्या तुम नही सोचते कि केवल शैतान के अस्तित्व ने ही उसके शत्रु मंदिर का निर्माण किया है ? वह पुरातन विरोध ही एक ऐसा रहस्मय हाथ है , जो कि निष्कपट लोगों की जेब से सोना – चांदी निकाल कर उपदेशकों और महंतों की तिजोरियों में संचित करता है ।“
” तुम गर्व मे चूर हो लेकिन नासमझ हो । मै तुम्हें ’ विशवास ’ का इतिहास सुनाऊगाँ और तुम उसमे सत्य को पाओगे जो हम दोनो के अस्तित्व को संयुक्त करता है और मेरे अस्तित्व को तुम्हारे अन्तकरण से बाँध देता है ।”
” समय के आरम्भ के पहले प्रहर मे आदमी सूर्य के चेहरे के सामने खडा हो गया और चिल्लाया , ’ आकाश के पीछे एक महान , स्नेहमय और उदार ईशवर वास करता है ।”
” जब आदमी ने उस बडे वृत की की ओर पीठ फ़ेर ली तो उसे अपनी परछाईं पृथ्वी पर दिखाई दी । वह चिल्ला उठा, ’ पृथ्वी की गहराईयों में एक शैतान रहता है जो दृष्टता को प्यार करता है।’
’ और वह आदमी अपने -आपसे कानाफ़ूसी करते हुये अपनी गुफ़ा की ओर चल दिया, ’ मै दो बलशाली शक्तियों के बीच मे हूँ । एक वह, जिसकी मुझे शरण लेनी चाहिये और दूसरी वह , जिसके विरुद्द मुझे युद्द करना होगा।’
” और सदियां जुलूस बना कर निकल गयीं , लेकिन मनुष्य दो शक्तियों के बीच मे डटा रहा – एक वह जिसकी वह अर्चना करता था , क्योंकि इसमे उसकी उन्नति थी और दूसरी वह, जिसकी वह निन्दा करता था , क्योंकि वह उसे भयभीत करती थी । “
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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